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पिता जहां सहायक शिक्षक थे, बेटी वहीं बनी हेडमास्टर

रायगढ़ वह जब भी अपने लक्ष्य से भटकती, मां उसे गले लगाकर सहलाती और कहती बेटी आगे बढ़ना है तो छोटी-मोटी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। जीवन में कुछ करना है तो पढ़ाई करो, लगातार मेहनत से ही जीवन में आगे बढ़ सकती हो। अनपढ़ मां की ये बात मान दोनों पैर से दिव्यांग युवती ने कड़ी मेहनत की और आज वह उसी स्कूल में हेडमास्टर है जहां कभी उसके पिता सहायक शिक्षक हुआ करते थे।
अपनी हुनर की बदौलत ही आज तक वह दो बार पुरस्कृत भी हो चुकी है।
पुसौर की गुणवती गुप्ता की कहानी प्रेरणादायक है। जन्म के दस माह बाद ही उसके पैर पोलियो से ग्रसित हो गए, हालांकि शिक्षक पिता स्व. बालमुकुंद गुप्ता ने बेटी की डॉक्टरी जांच में कमी नहीं आने दी और भिलाई, रायपुर व दिल्ली जैसे बड़े शहरों में ले जाकर इलाज कराया। लेकिन चिकित्सकों ने गुणवती के पैरों को ठीक नहीं कर पाए। ऐसे में दोनों पैरों निःशक्त होने के बाद गुणवती उदास रहने लगी। साथियों को चलते-फिरते देख वह भी उन्हीं के जैसे चलना चाहती थी, मगर यह संभव नहीं था। ऐसे में गुणवती का पढ़ाई से मन टूट रहा था। बेटी का हौसला टूटते देख मां गुलापी गुप्ता ने ऐन वक्त उसे संभाला और उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। उसी की बदौलत आज गुणवती उस मुकाम पर पहुंच गई, जिसके बारे में उसने कभी नहीं सोचा था। गुणवती ने बताया कि उसके पिता पुसौर प्राथमिक विद्यालय में सहायक शिक्षक थे, जिनकी रिटायरमेंट के तीन साल बाद 2005 में मृत्यु हो गई। इसके बाद 2010 में गुणवती ने विभागीय परीक्षा दी और उसमें पास होकर उसी प्राथमिक शाला की हेडमास्टर बन गई। अब तक उसे दो बार पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है। बताया गया कि वर्ष 2014 में उसे संत गाडगे लोक शिक्षक अवार्ड व 2015 में बेस्ट टीचर का अवार्ड दिया गया है।
छोटी बहन को मानती है दूसरी मां
गुणवती गुप्ता की छोटी बहन सौदामिनी भी पड़िगांव में शिक्षाकर्मी वर्ग-1 है। विवाह को सात साल बीतने के बाद भी वह अपने ससुराल में नहीं रहती है। सौदामिनी ने बताया कि उसके ससुराल चले जाने के बाद मां और बहन अकेले हो गए थे, उनकी देखभाल बहुत जरूरी थी। ऐसे में उसने कुछ दिन ससुराल में गुजारने के बाद फैसला किया कि मायके में रहकर बूढ़ी मां और दिव्यांग बहन की सेवा करेगी। उसके इस फैसले पर पति ने सहमति जताई और आज अपने पति के साथ पुसौर में रहती है। गुणवती छोटी बहन को मां से कम नहीं समझती। उसने कहा कि अगर छोटी बहन नहीं होती तो शायद वह बहुत कठिनाइयों का सामना करती। मगर उसकी बहन ने उन्हें संभाल लिया है।
मां को मिला बेस्ट मदर का पुरस्कार
गुणवती और सौदामिनी को हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने वाली गुलापी गुप्ता को 2011 में बेस्ट मदर पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। यह पुरस्कार शिक्षा विभाग द्वारा अपने बच्चों को प्रेरणा देकर उन्हें ठोस लक्ष्य के लिए प्रेरित करने वाली महिलाओं को दिया जाता है।
बेटे से कम नहीं हैं बेटियां
गुणवती की मां गुलापी गुप्ता ने नईदुनिया को बताया कि उनकी चार बेटियां हैं। इस दौरान उन्हें कभी यह नहीं लगा कि उनके बेटे नहीं हैं। शुरू से ही वह अपनी बेटियों को ही बेटा मान रही हैं। चार बेटियों में से तीन का विवाह हो चुका है, जबकि गुणवती ने विवाह नहीं किया है। गुणवती के विवाह नहीं करने का कारण उसका दिव्यांग होना है।
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