बिलासपुर, नईदुनिया न्यूज। सरोगेसी पद्धति के माध्यम
से जुड़वा बच्चों की मां बनी शासकीय कर्मचारी को मातृत्व अवकाश से वंचित किए
जाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने शासन को नोटिस
जारी कर जवाब तलब किया है।
याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत देते हुए शासन को निर्देशित किया है कि इस बीच यदि याचिकाकर्ता अवकाश पर जाती हैं तो उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई न की जाए।
श्रीमती साधना अग्रवाल, दुर्ग जिले के शासकीय उच्चतर माध्यमिक शाला उतई में व्याख्याता के पद पर कार्यरत श्रीमती साधना अग्रवाल ने अपने वकील अजय श्रीवास्तव के जरिए याचिका दायर कर कहा है कि सरोगेसी पद्धति से वह जुड़वा बच्चे की मां बनी है। इसके बाद उसने मातृत्व अवकाश पर जाने के लिए शिक्षा विभाग में आवेदन दिया था।
विभागीय अधिकारियों ने इस पद्धति से मां बनने पर अवकाश का प्रावधान न होने का हवाला देते हुए उसके आवेदन को अस्वीकार कर दिया। विभाग के इस फैसले को चुनौती देते हुए कहा है कि मातृत्व अवकाश का उद्देश्य माता और बच्चों के बीच उचित संबंध स्थापित करना है। नवजात बच्चे की उचित देखभाल मां ही अच्छी तरह कर सकती है।
शासकीय कर्मचारी अगर इस पद्धति से मां बनती है तो उसे अवकाश से वंचित नहीं किया जा सकता। अवकाश नियमों का हवाला देते हुए कहा है कि यदि कोई महिला कर्मचारी बच्चे को दत्तक पुत्र या पुत्री के रूप में स्वीकार करता है तो भी वह अवकाश की पात्रता रखती है। दत्तक वाले प्रकरण में भी महिला बच्चे को जन्म नहीं देती।
इसी प्रकार सरोगेसी पद्धति में महिला जन्म तो नहीं देती किन्तु जन्म के बाद बच्चा उसी को सौंप दिया जाता है एवं उसके बाद बच्चे की पूरी जिम्मेदारी सरोगेसी से बच्चा प्राप्त करने वाली महिला की होती है। उसे अवकाश नहीं दिए जाने की स्थिति में नवजात बच्चे के अधिकार का हनन होगा क्योंकि उसे देखभाल करने वाला कोई नहीं होगा।
यह संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार का उल्लंघन है। मामले की सुनवाई जस्टिस एमएम श्रीवास्तव के सिंगल बेंच में हुई। सिंगल बेंच ने याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत प्रदान करते हुए मातृत्व अवकाश पर जाने की छूट दी है। साथ ही शासन को निर्देशित किया है कि अवकाश पर जाने की स्थिति में याचिकाकर्ता के खिलाफ किसी तरह की कोई कार्रवाई न की जाए।
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याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत देते हुए शासन को निर्देशित किया है कि इस बीच यदि याचिकाकर्ता अवकाश पर जाती हैं तो उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई न की जाए।
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विभागीय अधिकारियों ने इस पद्धति से मां बनने पर अवकाश का प्रावधान न होने का हवाला देते हुए उसके आवेदन को अस्वीकार कर दिया। विभाग के इस फैसले को चुनौती देते हुए कहा है कि मातृत्व अवकाश का उद्देश्य माता और बच्चों के बीच उचित संबंध स्थापित करना है। नवजात बच्चे की उचित देखभाल मां ही अच्छी तरह कर सकती है।
शासकीय कर्मचारी अगर इस पद्धति से मां बनती है तो उसे अवकाश से वंचित नहीं किया जा सकता। अवकाश नियमों का हवाला देते हुए कहा है कि यदि कोई महिला कर्मचारी बच्चे को दत्तक पुत्र या पुत्री के रूप में स्वीकार करता है तो भी वह अवकाश की पात्रता रखती है। दत्तक वाले प्रकरण में भी महिला बच्चे को जन्म नहीं देती।
इसी प्रकार सरोगेसी पद्धति में महिला जन्म तो नहीं देती किन्तु जन्म के बाद बच्चा उसी को सौंप दिया जाता है एवं उसके बाद बच्चे की पूरी जिम्मेदारी सरोगेसी से बच्चा प्राप्त करने वाली महिला की होती है। उसे अवकाश नहीं दिए जाने की स्थिति में नवजात बच्चे के अधिकार का हनन होगा क्योंकि उसे देखभाल करने वाला कोई नहीं होगा।
यह संविधान द्वारा प्रदत्त समानता के अधिकार का उल्लंघन है। मामले की सुनवाई जस्टिस एमएम श्रीवास्तव के सिंगल बेंच में हुई। सिंगल बेंच ने याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत प्रदान करते हुए मातृत्व अवकाश पर जाने की छूट दी है। साथ ही शासन को निर्देशित किया है कि अवकाश पर जाने की स्थिति में याचिकाकर्ता के खिलाफ किसी तरह की कोई कार्रवाई न की जाए।
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