प्राइमरी स्कूलों
में पढ़ाने वाले शिक्षकों के ऐसे किस्से तो आपने अक्सर सुने होंगे कि
महीनों महीनों स्कूल में उनके दर्शन नहीं होते हैं या फलां शिक्षक की
जगह कोई और पढ़ाता मिल जाए। लेकिन छत्तीसगढ़ के इन दो शिक्षकों की कहानी
बिल्कुल अलग है और वो नसीहत हैं उन तमाम शिक्षकों के लिए जो बच्चों को
शिक्षा देने को सरकारी ड्यूटी से ज्यादा कुछ नहीं समझते।
चुनौतियों के लिए व्याकुल और शिक्षा के लिए तत्पर
छत्तीसगढ़ के इन दो शिक्षकों की कहानी आपको हैरत में डाल सकती है। राज्य
के बिलासपुर जिले के पेंडरा ब्लॉक के आदिवासी इलाके के स्कूल में पढ़ाने के
लिए इन शिक्षकों को 12 किलोमीटर का सफर रोज तय करना पड़ता है जिसमें जंगल,
पहाड़, नदी और जंगली जानवरों से जूझते हुए जैसे तैसे स्कूल पहुंचते हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार शिक्षकों के दायित्व निभाने का यह दुर्लभ मामला है बिलासपुर जिले के पेंडरा ब्लॉक का। यहां के आदिवासी बहुल गांव बमहानी के स्कूल में पढ़ाने वाले हेडमास्टर प्रेम सिंह सरोठे और शिक्षक अनिल पैकरा अपने दायित्व के प्रति इस कदर समर्पित हैं किसी भी तरह की चुनौती से नहीं डरते।
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के अनुसार शिक्षकों के दायित्व निभाने का यह दुर्लभ मामला है बिलासपुर जिले के पेंडरा ब्लॉक का। यहां के आदिवासी बहुल गांव बमहानी के स्कूल में पढ़ाने वाले हेडमास्टर प्रेम सिंह सरोठे और शिक्षक अनिल पैकरा अपने दायित्व के प्रति इस कदर समर्पित हैं किसी भी तरह की चुनौती से नहीं डरते।