नियंत्रक महालेखाकार (एजी) ने 2015-16 के लिए अपनी सालाना रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ सरकार के विभागों में करीब 3000 करोड़ रुपए की गड़बड़ियां पकड़ी हैं। अमूमन सभी विभागों में आर्थिक अनियमितताएं सामने आई हैं।
शिक्षा, मेडिकल एजुकेशन और जल संसाधन विभाग की कार्य प्रणाली पर एजी ने गंभीर आपत्ति की है। छत्तीसगढ़ के महालेखाकार बिजय कुमार मोहंती ने रिपोर्ट जारी करते हुए बताया कि 2015-16 में सरकार ने लगभग 70 हजार करोड़ का बजट पेश किया था। उसमें से 20 हजार करोड़ सरकार खर्च ही नहीं कर पाई। अमूमन सभी विभागों में छोटे-बड़े घपले और घोटाले हैं। मोहंती ने प्रमुख विभागों में की गई जांच के आधार पर उजागर हुई गड़बड़ियों की जानकारी दी। एनीकट के निर्माण में बड़ी अनियमितताएं हुई हैं। शेष|पेज 9
इनके निर्माण पर 1095 करोड़ से अधिक खर्च किया गया। ये सारा पैसा पानी में चला गया। 2005 से 2016 के बीच 280 जगहों पर एनीकट बनाए गए। इनके निर्माण पर 1095.74 करोड़ रुपए खर्च किया गया। ये एनीकट भूमि विवाद, मुआवजा, ठेकेदारों के धीमी काम की गति की वजह से पिछले दस सालों में भी बनकर तैयार नहीं हुए। जल संसाधन विभाग ने एनीकट के निर्माण में आ रही किसी भी तरह की बाधा को दूर नहीं किया। 119 एनीकट की पुरानी संरचनाओं में क्षति का आंकलन एजी ने किया। 611.85 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी तीन से दस साल के बाद भी ये पूरी तरह से नहीं बन पाए। रबी के मौसम में सिंचाई की पूर्ति इन एनीकट से नहीं हो पाई। 72 एनीकट में से 47 एनीकट भूजल स्तर में बढ़ोत्तरी नहीं कर सके। कई एनीकट तो ऐसे जगह बना दिए गए, जहां पर पानी ही नहीं था या फिर पानी का स्तर काफी नीचे जा चुका था। बिजली कनेक्शन के अभाव में एनीकट कृषि जमीन को पानी ही नहीं दे पाए। 500 लोगों से बातचीत की गई। लोगों ने दो टूक शब्दों में कहा कि विभाग ने बिना किसी सर्वे किए एनीकट बना दिए।
679 गांवों में सड़क निर्माण शुरू नहीं हुआ - प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 679 गांव में अब तक सड़क का निर्माण ही नहीं शुरू हुआ। रोड चौड़ा करने के नाम पर जितना पैसा खर्च किया गया उतने में नई रोड बन जाती। कई जगहों पर 23 करोड़ रुपए की सड़कों का आज तक उपयोग नहीं हो पाया है, क्योंकि वहां पर पुल बनाया जाना था मगर नहीं बना। इस वजह से रोड का निर्माण व्यर्थ हो गया। ठेकेदारों को 21 करोड़ रुपए की राशि अधिक दे दी गई।
स्कूलों में कितने बच्चे, पता नहीं : एजी के मुताबिक प्रदेश के 879 गांवों में प्राइमरी स्कूल और 1231 गांवों में मिडिल स्कूल तक नहीं है। 40% स्कूल में शिक्षक अधिक और 60% स्कूलों में शिक्षक निर्धारित मापदंड से कम है। यूनिफाॅर्म खरीदी में बड़ा घोटाला सकरार के दो निगमों ने किया है। राजीव गांधी शिक्षा मिशन और लोक शिक्षण संचालनालय मिलकर यूनिफार्म खरीदते हैं। दोनों ने अलग-अलग दर पर खरीदे। 49.5 करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च किए गए। दूसरी तरफ 6 से 14 वर्ष के स्कूल जाने वाले बच्चों का डाटा सरकार के पास नहीं है। स्कूलों में कितने बच्चे हैं, यह सरकार काे पता नहीं। सरकारी स्कूलों की अपेक्षा निजी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ रही है। सरगुजा जिले के कई पंचायतों में सरपंचों ने स्कूल की इमारतों के लिए आए पैसों को पूरी तरह से खा लिया। इमारत का नया निर्माण तो दूर की बात रिनोवेशन तक नहीं किया गया। 9.69 करोड़ रुपए पंचायतों ने खा लिए। खुद सरकार इस बात को मान रही है। निजी या सरकारी स्कूल मुनाफा नहीं दिखा सकते। मगर छत्तीसगढ़ के अधिकांश स्कूल मुनाफा दिखा रहे हैं। राजकुमार कालेज ने बड़ा मुनाफा दिखाया है। सरकार ने शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए कोई सर्वे नहीं कराया।
ठेकेदारों ने 4 करोड़ के बदले 12 करोड़ सरकार से वसूले : 1663 करोड़ का एरियर की राशि सरकार वसूल नहीं कर पाई। ये राशि टैक्स के रूप में वसूल की जानी थी। 14.14 करोड़ रायल्टी जिंदल से सरकार नहीं वसूल पाई। बिलासपुर में रोड के लिए ठेकेदार ने कंसलटेंट नियुक्त करके 4 करोड़ की सड़क के बदले 12 करोड़ का भुगतान वसूल कर लिया। सरकार कुछ नहीं कर पाई। कांकेर के पीएचई विभाग के सब इंजीनियर ने 2 करोड़ रुपए का गबन कर लिया। 170 चेक उसने खुद अपने नाम से काटकर 2 करोड़ रुपए की राशि निकाल ली।
एजी रिपोर्ट की लोक लेखा और सार्वजनिक उपक्रम समिति जांच करेगी। इनके प्रतिवेदन विधानसभा में प्रस्तुत किए जाएंगे। -डॉ. रमन सिंह, मुख्यमंत्री
एजी की रिपोर्ट... प्याली में तूफान
न अफसरों से रिकवरी, न कार्रवाई
जब कोई आपकी बातों पर ध्यान न दे तो उसका मतलब है कि उन बातों का कोई औचित्य नहीं है। या उन बातों का किसी पर कोई असर नहीं हो रहा है। और लगभग यही बात एजी की रिपोर्ट पर लागू होने लगी है। नियंत्रक महालेखाकार। जितना क्लिष्ट नाम उतना ही क्लिष्ट काम। हर साल बजट सत्र के अंतिम दिन एजी की रिपोर्ट सदन में पेश की जाती है। रिपोर्ट आते ही विपक्ष सरकार पर हमले करने लगता है और सरकार एजी की रिपोर्ट का जवाब देने की तैयारी में जुट जाती है। शेष|पेज 9
गुरुवार को भी एजी ने छत्तीसगढ़ में तीन हजार करोड़ की गड़बड़ियों को उजागर किया है। कथित गड़बड़ियां। क्योंकि अभी ये प्रमाणित नहीं हैं। केवल कागजों के आधार पर निकाला गया निष्कर्ष है। अब विधानसभा की लोकलेखा समिति में इन पर बहस होगी। सरकार अपना जवाब देगी। और सरकार के जवाब से समिति के सदस्य संतुष्ट नहीं हुए तो संबंधित विभाग या लेन-देन के बारे में कार्रवाई की अनुशंसा करेंगे। सालों से यही प्रक्रिया। महज औपचारिकता बनकर रह गई है। कारण साफ है, संविधान के प्रावधानों के तहत केंद्र में सीएजी और राज्य में एजी का पद बना दिया गया है। पर एजी की रिपोर्ट पर कार्रवाई शायद ही कभी होती है। होती भी है तो वह भी खानापूर्ति के लिए। हाल के वर्षों में ऐसा कोई बड़ा मामला नहीं जिसमें एजी की रिपोर्ट के आधार पर लोक लेखा समिति की सिफारिश पर बड़ी कार्रवाई हुई हो। ऐसा क्यों हो रहा है? यह प्रश्न स्वाभाविक है। इसका उत्तर भी उतना ही आसान है-एजी की रिपोर्ट का अध्ययन करने और विभागों का जवाब लेने के बाद लोक लेखा समिति को केवल और केवल सरकार को सिफारिश करने का अधिकार है। इस सिफारिश को मानने के लिए सरकार बाध्य नहीं है। और जब बाध्यता नहीं है ताे ऐसी किसी सिफारिश पर क्या होगा, सहज ही कल्पना की जा सकती है। इसलिए अब एजी की रिपोर्ट से न तो कोई खलबली मचती है और न ही उससे अपने सिस्टम के काम में बदलाव होता है। बड़ा अमला। बड़े पद। बड़ा बजट। सब दिखावा।
नियंत्रक महालेखाकार (एजी) के गड़बड़ियों के खुलासे के बाद विधानसभा की लोकलेखा समिति ने ऐसे मामलों की जांच कर बीते सालों में कई अफसरों को दोषी करार दिया। लेकिन किसी भी निष्कर्ष या सिफारिश पर अब तक कार्रवाई नहीं की गई, क्योंकि सरकार ऐसी सिफारिशों पर अमल करने के लिए बाध्य नहीं है। भास्कर टीम ने एजी रिपोर्ट में सामने लाए गए कई गंभीर मामलों की जांच के बाद लोकलेखा समिति की ओर से की गई सिफारिशों की पड़ताल की है। शेष|पेज 9
ऐसी सभी सिफारिशों पर न तो कार्रवाई की गई है और न ही शासन को हुए नुकसान की किसी अफसर से वसूली ही की जा सकी है।
केस -1
स्टेट हेलिकॉप्टर अगुस्ता ए-109 की 2008 में उच्च दर पर खरीदी पर एजी ने 65 लाख रुपए के नुकसान की बात कही थी। लोक लेखा समिति ने इसकी जांच की और पाया कि 25 करोड़ के हेलिकॉप्टर की खरीदी के लिए बनाई गई समिति ने फैसले इतनी देर से किए कि शासन को अतिरिक्त खर्च करना पड़ा। समिति ने विमान खरीदने के लिए विदेश यात्रा करने वाले अफसरों से यात्रा व्यय वसूलने की सिफारिश की थी, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
केस - 2
शिवनाथ नदी पर रेडियस वाटर एनीकट के अनुबंध पर एजी ने गड़बड़ी पकड़ी थी। लोक लेखा समिति ने दोषी अफसर पर कार्रवाई की सिफारिश की थी क्योंकि अनुबंध के जरिए रेडियस ग्रुप को नदी पर एनीकट बनाकर पानी बेचने का अधिकार दिया था। पीएसी ने 2008 -09 में जांच के बाद अनुबंध रद्द करने तथा दोषी एकेवीएन अफसरों पर कार्रवाई की सिफारिश की थी। उधर, रेडियस वाटर ने ट्रिब्यूनल में अपील की थी, जिसकी सुनवाई चल रही है।
केस - 3
लोक निर्माण विभाग में 2006 में पूर्व-पश्चिम कारिडोर के अंतर्गत मानपुर देवभाेग सिंगल लाइन को डबल करने के लिए 28.92 करोड़ की स्वीकृति दी गई थी, परन्तु निर्माण में 56.62 करोड़ रुपए खर्च किए गए और 27.70 करोड़ अधिक (95 फीसदी अधिक) व्यय हुआ। लोकलेखा समिति ने जांच के बाद तत्कालीन ईई विजय कुमार भतपहरी, एके मन्नान और मुख्य अभियंता राज पर कार्रवाई की सिफारिश की। राज रिटायर होने के कारण कार्रवाई से बच गए, दो अफसरों का केवल इंक्रीमेंट रोका गया।
केस - 4
स्वास्थ्य विभाग ने 2009 में 170 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र खोलने की योजना बनाई गई और करोड़ों का बजट रखा। एजी ने जांच में जरूरत के विपरीत मानकर आपत्ति की। पीएसी ने तत्कालीन सचिव बीएल अग्रवाल का क्रॉस इक्जामिनेशन किया था। विभाग ने पहले तो जनसंख्या के आधार पर ऐसे केंद्र खोलने की जानकारी दी, लेकिन जांच में पता चला कि ब्लॉक स्तर पर भी केंद्र नहीं खुले थे। तब समिति ने तत्कालीन सचिव समेत सभी दोषी अफसरों पर कड़ी कार्रवाई की सिफारिश की थी। कार्रवाई के बजाय सचिव प्रमोट हो गए।
शिव दुबे
विश्लेषण
17 हजार मरीज पर केवल एक डाॅक्टर
प्रदेश में 17 हजार मरीजों पर केवल एक डाॅक्टर है। 963 सुपर स्पेशियलिटी डाॅक्टर होने चाहिए, पर केवल 46 हैं। इनमें से एक भी डाॅक्टर गांव में सेवा देने नहीं गया।
शराब के लिए दिए 112 करोड़ रु. अधिक
ब्रेवरेज कार्पोरेशन को डिस्टलरी कंपनियों ने जो रेट दिए, उसी को मानक मानकर शराब की कीमत तय कर दी। 112 करोड़ रु. कंपनियों को अधिक दिए गए।
शिक्षा, मेडिकल एजुकेशन और जल संसाधन विभाग की कार्य प्रणाली पर एजी ने गंभीर आपत्ति की है। छत्तीसगढ़ के महालेखाकार बिजय कुमार मोहंती ने रिपोर्ट जारी करते हुए बताया कि 2015-16 में सरकार ने लगभग 70 हजार करोड़ का बजट पेश किया था। उसमें से 20 हजार करोड़ सरकार खर्च ही नहीं कर पाई। अमूमन सभी विभागों में छोटे-बड़े घपले और घोटाले हैं। मोहंती ने प्रमुख विभागों में की गई जांच के आधार पर उजागर हुई गड़बड़ियों की जानकारी दी। एनीकट के निर्माण में बड़ी अनियमितताएं हुई हैं। शेष|पेज 9
इनके निर्माण पर 1095 करोड़ से अधिक खर्च किया गया। ये सारा पैसा पानी में चला गया। 2005 से 2016 के बीच 280 जगहों पर एनीकट बनाए गए। इनके निर्माण पर 1095.74 करोड़ रुपए खर्च किया गया। ये एनीकट भूमि विवाद, मुआवजा, ठेकेदारों के धीमी काम की गति की वजह से पिछले दस सालों में भी बनकर तैयार नहीं हुए। जल संसाधन विभाग ने एनीकट के निर्माण में आ रही किसी भी तरह की बाधा को दूर नहीं किया। 119 एनीकट की पुरानी संरचनाओं में क्षति का आंकलन एजी ने किया। 611.85 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी तीन से दस साल के बाद भी ये पूरी तरह से नहीं बन पाए। रबी के मौसम में सिंचाई की पूर्ति इन एनीकट से नहीं हो पाई। 72 एनीकट में से 47 एनीकट भूजल स्तर में बढ़ोत्तरी नहीं कर सके। कई एनीकट तो ऐसे जगह बना दिए गए, जहां पर पानी ही नहीं था या फिर पानी का स्तर काफी नीचे जा चुका था। बिजली कनेक्शन के अभाव में एनीकट कृषि जमीन को पानी ही नहीं दे पाए। 500 लोगों से बातचीत की गई। लोगों ने दो टूक शब्दों में कहा कि विभाग ने बिना किसी सर्वे किए एनीकट बना दिए।
679 गांवों में सड़क निर्माण शुरू नहीं हुआ - प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 679 गांव में अब तक सड़क का निर्माण ही नहीं शुरू हुआ। रोड चौड़ा करने के नाम पर जितना पैसा खर्च किया गया उतने में नई रोड बन जाती। कई जगहों पर 23 करोड़ रुपए की सड़कों का आज तक उपयोग नहीं हो पाया है, क्योंकि वहां पर पुल बनाया जाना था मगर नहीं बना। इस वजह से रोड का निर्माण व्यर्थ हो गया। ठेकेदारों को 21 करोड़ रुपए की राशि अधिक दे दी गई।
स्कूलों में कितने बच्चे, पता नहीं : एजी के मुताबिक प्रदेश के 879 गांवों में प्राइमरी स्कूल और 1231 गांवों में मिडिल स्कूल तक नहीं है। 40% स्कूल में शिक्षक अधिक और 60% स्कूलों में शिक्षक निर्धारित मापदंड से कम है। यूनिफाॅर्म खरीदी में बड़ा घोटाला सकरार के दो निगमों ने किया है। राजीव गांधी शिक्षा मिशन और लोक शिक्षण संचालनालय मिलकर यूनिफार्म खरीदते हैं। दोनों ने अलग-अलग दर पर खरीदे। 49.5 करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च किए गए। दूसरी तरफ 6 से 14 वर्ष के स्कूल जाने वाले बच्चों का डाटा सरकार के पास नहीं है। स्कूलों में कितने बच्चे हैं, यह सरकार काे पता नहीं। सरकारी स्कूलों की अपेक्षा निजी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ रही है। सरगुजा जिले के कई पंचायतों में सरपंचों ने स्कूल की इमारतों के लिए आए पैसों को पूरी तरह से खा लिया। इमारत का नया निर्माण तो दूर की बात रिनोवेशन तक नहीं किया गया। 9.69 करोड़ रुपए पंचायतों ने खा लिए। खुद सरकार इस बात को मान रही है। निजी या सरकारी स्कूल मुनाफा नहीं दिखा सकते। मगर छत्तीसगढ़ के अधिकांश स्कूल मुनाफा दिखा रहे हैं। राजकुमार कालेज ने बड़ा मुनाफा दिखाया है। सरकार ने शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए कोई सर्वे नहीं कराया।
ठेकेदारों ने 4 करोड़ के बदले 12 करोड़ सरकार से वसूले : 1663 करोड़ का एरियर की राशि सरकार वसूल नहीं कर पाई। ये राशि टैक्स के रूप में वसूल की जानी थी। 14.14 करोड़ रायल्टी जिंदल से सरकार नहीं वसूल पाई। बिलासपुर में रोड के लिए ठेकेदार ने कंसलटेंट नियुक्त करके 4 करोड़ की सड़क के बदले 12 करोड़ का भुगतान वसूल कर लिया। सरकार कुछ नहीं कर पाई। कांकेर के पीएचई विभाग के सब इंजीनियर ने 2 करोड़ रुपए का गबन कर लिया। 170 चेक उसने खुद अपने नाम से काटकर 2 करोड़ रुपए की राशि निकाल ली।
एजी रिपोर्ट की लोक लेखा और सार्वजनिक उपक्रम समिति जांच करेगी। इनके प्रतिवेदन विधानसभा में प्रस्तुत किए जाएंगे। -डॉ. रमन सिंह, मुख्यमंत्री
एजी की रिपोर्ट... प्याली में तूफान
न अफसरों से रिकवरी, न कार्रवाई
जब कोई आपकी बातों पर ध्यान न दे तो उसका मतलब है कि उन बातों का कोई औचित्य नहीं है। या उन बातों का किसी पर कोई असर नहीं हो रहा है। और लगभग यही बात एजी की रिपोर्ट पर लागू होने लगी है। नियंत्रक महालेखाकार। जितना क्लिष्ट नाम उतना ही क्लिष्ट काम। हर साल बजट सत्र के अंतिम दिन एजी की रिपोर्ट सदन में पेश की जाती है। रिपोर्ट आते ही विपक्ष सरकार पर हमले करने लगता है और सरकार एजी की रिपोर्ट का जवाब देने की तैयारी में जुट जाती है। शेष|पेज 9
गुरुवार को भी एजी ने छत्तीसगढ़ में तीन हजार करोड़ की गड़बड़ियों को उजागर किया है। कथित गड़बड़ियां। क्योंकि अभी ये प्रमाणित नहीं हैं। केवल कागजों के आधार पर निकाला गया निष्कर्ष है। अब विधानसभा की लोकलेखा समिति में इन पर बहस होगी। सरकार अपना जवाब देगी। और सरकार के जवाब से समिति के सदस्य संतुष्ट नहीं हुए तो संबंधित विभाग या लेन-देन के बारे में कार्रवाई की अनुशंसा करेंगे। सालों से यही प्रक्रिया। महज औपचारिकता बनकर रह गई है। कारण साफ है, संविधान के प्रावधानों के तहत केंद्र में सीएजी और राज्य में एजी का पद बना दिया गया है। पर एजी की रिपोर्ट पर कार्रवाई शायद ही कभी होती है। होती भी है तो वह भी खानापूर्ति के लिए। हाल के वर्षों में ऐसा कोई बड़ा मामला नहीं जिसमें एजी की रिपोर्ट के आधार पर लोक लेखा समिति की सिफारिश पर बड़ी कार्रवाई हुई हो। ऐसा क्यों हो रहा है? यह प्रश्न स्वाभाविक है। इसका उत्तर भी उतना ही आसान है-एजी की रिपोर्ट का अध्ययन करने और विभागों का जवाब लेने के बाद लोक लेखा समिति को केवल और केवल सरकार को सिफारिश करने का अधिकार है। इस सिफारिश को मानने के लिए सरकार बाध्य नहीं है। और जब बाध्यता नहीं है ताे ऐसी किसी सिफारिश पर क्या होगा, सहज ही कल्पना की जा सकती है। इसलिए अब एजी की रिपोर्ट से न तो कोई खलबली मचती है और न ही उससे अपने सिस्टम के काम में बदलाव होता है। बड़ा अमला। बड़े पद। बड़ा बजट। सब दिखावा।
नियंत्रक महालेखाकार (एजी) के गड़बड़ियों के खुलासे के बाद विधानसभा की लोकलेखा समिति ने ऐसे मामलों की जांच कर बीते सालों में कई अफसरों को दोषी करार दिया। लेकिन किसी भी निष्कर्ष या सिफारिश पर अब तक कार्रवाई नहीं की गई, क्योंकि सरकार ऐसी सिफारिशों पर अमल करने के लिए बाध्य नहीं है। भास्कर टीम ने एजी रिपोर्ट में सामने लाए गए कई गंभीर मामलों की जांच के बाद लोकलेखा समिति की ओर से की गई सिफारिशों की पड़ताल की है। शेष|पेज 9
ऐसी सभी सिफारिशों पर न तो कार्रवाई की गई है और न ही शासन को हुए नुकसान की किसी अफसर से वसूली ही की जा सकी है।
केस -1
स्टेट हेलिकॉप्टर अगुस्ता ए-109 की 2008 में उच्च दर पर खरीदी पर एजी ने 65 लाख रुपए के नुकसान की बात कही थी। लोक लेखा समिति ने इसकी जांच की और पाया कि 25 करोड़ के हेलिकॉप्टर की खरीदी के लिए बनाई गई समिति ने फैसले इतनी देर से किए कि शासन को अतिरिक्त खर्च करना पड़ा। समिति ने विमान खरीदने के लिए विदेश यात्रा करने वाले अफसरों से यात्रा व्यय वसूलने की सिफारिश की थी, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।
केस - 2
शिवनाथ नदी पर रेडियस वाटर एनीकट के अनुबंध पर एजी ने गड़बड़ी पकड़ी थी। लोक लेखा समिति ने दोषी अफसर पर कार्रवाई की सिफारिश की थी क्योंकि अनुबंध के जरिए रेडियस ग्रुप को नदी पर एनीकट बनाकर पानी बेचने का अधिकार दिया था। पीएसी ने 2008 -09 में जांच के बाद अनुबंध रद्द करने तथा दोषी एकेवीएन अफसरों पर कार्रवाई की सिफारिश की थी। उधर, रेडियस वाटर ने ट्रिब्यूनल में अपील की थी, जिसकी सुनवाई चल रही है।
केस - 3
लोक निर्माण विभाग में 2006 में पूर्व-पश्चिम कारिडोर के अंतर्गत मानपुर देवभाेग सिंगल लाइन को डबल करने के लिए 28.92 करोड़ की स्वीकृति दी गई थी, परन्तु निर्माण में 56.62 करोड़ रुपए खर्च किए गए और 27.70 करोड़ अधिक (95 फीसदी अधिक) व्यय हुआ। लोकलेखा समिति ने जांच के बाद तत्कालीन ईई विजय कुमार भतपहरी, एके मन्नान और मुख्य अभियंता राज पर कार्रवाई की सिफारिश की। राज रिटायर होने के कारण कार्रवाई से बच गए, दो अफसरों का केवल इंक्रीमेंट रोका गया।
केस - 4
स्वास्थ्य विभाग ने 2009 में 170 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र खोलने की योजना बनाई गई और करोड़ों का बजट रखा। एजी ने जांच में जरूरत के विपरीत मानकर आपत्ति की। पीएसी ने तत्कालीन सचिव बीएल अग्रवाल का क्रॉस इक्जामिनेशन किया था। विभाग ने पहले तो जनसंख्या के आधार पर ऐसे केंद्र खोलने की जानकारी दी, लेकिन जांच में पता चला कि ब्लॉक स्तर पर भी केंद्र नहीं खुले थे। तब समिति ने तत्कालीन सचिव समेत सभी दोषी अफसरों पर कड़ी कार्रवाई की सिफारिश की थी। कार्रवाई के बजाय सचिव प्रमोट हो गए।
शिव दुबे
विश्लेषण
17 हजार मरीज पर केवल एक डाॅक्टर
प्रदेश में 17 हजार मरीजों पर केवल एक डाॅक्टर है। 963 सुपर स्पेशियलिटी डाॅक्टर होने चाहिए, पर केवल 46 हैं। इनमें से एक भी डाॅक्टर गांव में सेवा देने नहीं गया।
शराब के लिए दिए 112 करोड़ रु. अधिक
ब्रेवरेज कार्पोरेशन को डिस्टलरी कंपनियों ने जो रेट दिए, उसी को मानक मानकर शराब की कीमत तय कर दी। 112 करोड़ रु. कंपनियों को अधिक दिए गए।