चुनाव
आयोग जब भी चुनाव की अधिसूचना जारी करता है तो यही करता है कि विधानसभा के
गठन के लिए चुनाव हो रहा है. अब ये किसी तरह से हो गया है कि चुनाव
मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के लिए हो रहा है.
जबकि मूल कल्पना यही थी कि जनता अपने अपने क्षेत्र में उम्मीदवार चुने और विधानसभा में पहुंचकर विजयी उम्मीदवारों से सरकार चुने. तभी प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को सदन का नेता कहा जाता है, मतलब सदन ने उन्हें अपना नेता चुना है. पर ऐसा नहीं होता है. लेकिन ऐसा ही होना चाहिए कि आप अपना ध्यान इस पर न रखें कि सरकार किसकी बन रही है इस पर ध्यान दें कि आपके वोट से कहीं कोई ग़लत उम्मीदवार तो नहीं जीत रहा है. छत्तीसगढ़ के चुनावों में चार-चार मोर्चा है. एक मोर्चा है रमन सिंह का जो 15 साल से मुख्यमंत्री हैं, चौथी बार बनना चाहते हैं. कांग्रेस पार्टी ने अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है. अजित जोगी की जनता कांग्रेस और मायावती की बसपा का तीसरा मोर्चा है. चौथा मोर्चा है समाजवादी पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी.
छत्तीसगढ़ के चुनावों में हार-जीत का अंतर बहुत कम होता है. 2013 में 0.7 प्रतिशत का था, लेकिन उसके पहले ढाई प्रतिशत का. बीजेपी को 41 प्रतिशत वोट मिले थे और कांग्रेस को 40 प्रतिशत, बसपा को 4 प्रतिशत. इस चौतरफा लड़ाई में कौन जीतेगा, अकेले सरकार बनाएगा या गठबंधन की सरकार बनेगी, इस सवाल का जवाब चुनाव बाद में मिलेगा. 2003 में बसपा को अच्छा वोट मिला था, लेकिन तब मायावती की यूपी में सरकार थी, 2008 में यूपी में सरकार चली गई और मायावती का वोट घट गया. 2013 में और घट गया. इसके बाद भी अगर कांग्रेस-बसपा का गठजोड़ हुआ होता तो 2013 में इस गठबंधन के पास 45 प्रतिशत वोट होते और 51 सीट होती, आराम से सरकार बन जाती. इस बार अजित जोगी और मायावती साथ हैं.
बीजेपी के प्रचार में चेहरा रमन सिंह ही हैं. बीजेपी के पोस्टरों में रमन सिंह का चेहरा ही प्रमुख है. प्रधानमंत्री का चेहरा नहीं है. कांग्रेस के पोस्टर में चेहरा राहुल गांधी का है, मगर स्लोगन की जगह वादा साफ साफ लिखा है जैसे सारे अनियमित कर्मचारी नियमित किए जाएंगे. प्रचार युद्ध में जनता कांग्रेस के पोस्टर कम दिखते हैं.
2013 के विधानसभा चुनावों के बाद 2015-16 के पंचायत चुनावों में बीजेपी की बढ़त में काफी गिरावट आई है. 3 प्रतिशत की कमी. जबकि कांग्रेस ने तीन प्रतिशत की बढ़त हासिल की है. तो किसे जीतने के लिए कितना स्विंग चाहिए. मतलब किसके यहां से वोट घूम कर किसके यहां जा पहुंचेगा और उसकी सरकार बनेगी. 2013 में बीजेपी की सीटें घट गई थीं. 50 से 49 पर आ गईं. ये कोई खास कमी नहीं थी मगर सरकार बन गई. 2013 के चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन जस का तस रहा. 2008 में 38 सीटें थीं, 2013 में भी 39 सीटें ही आईं. छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने के लिए 46 सीटें चाहिएं.
छत्तीसगढ़ की 77 ग्रामीण आबादी है. अनुसूचित जनजाति जो खुद को आदिवासी कहते हैं उनकी आबादी 32 प्रतिशत है. छोटा राज्य है मगर आबादी के हिसाब से इसके चार क्षेत्र हो जाते हैं. एक इलाका है अनुसूचित जनजाति के वर्चस्व का, एक इलाका है हिन्दू मतदाताओं के वर्चस्व का, एक इलाका अनुसूचित जाति का भी है जो 12 प्रतिशत हैं. वैसे तो इस तरह के कार्यक्रम डॉ प्रणॉय रॉय, दोराब सोपारीवाला ही बेहतर करते हैं, ये सारा कुछ उन्हीं के नोटबुक से लेकर बोल रहा हूं. आप समझते हैं कि जिसमें आप बेहतर नहीं होते हैं उसमें आप बेहतर नहीं होते हैं, फिर भी छत्तीसगढ़ को इन आंकड़ों और शब्दावलियों के बहाने देखा जा सकता है. 2018 में अभी तक जो ओपिनियन पोल हुए हैं उनका औसत क्या कहता है. बीजेपी को 45 सीटें मिली हैं, कांग्रेस को 35 सीटें. जोगी और बसपा को 5 वहीं, अन्य को 5 सीटें मिली हैं. ये ओपिनियन पोल जो चैनलों पर चला है, उसका औसत है. क्या होगा, वही बेहतर बता सकते हैं. अभी तक छत्तीसगढ़ में पहले चरण का मतदान हो चुका है और 76.3 प्रतिशत वोट पड़ा है. छत्तीसगढ़ के मुख्यमत्री रमन सिंह से बातचीत आप सुनिए.
प्राइम टाइम की सीरीज़ में हमने शिक्षा और रोज़गार पर काफी ज़ोर दिया है तो देखना चाहेंगे कि इस मामले में बीजेपी और कांग्रेस ने क्या कहा है. पहले बीजेपी का घोषणा पत्र देखा, कुछ खास नहीं लगा, इसकी वजह ये हो सकती है कि सब कुछ 15 साल में हो गया होगा या फिर शिक्षा को लेकर अब बोलने के लिए कुछ बचा नहीं है. इसलिए बीजेपी ने वादा किया है कि हर ब्लाक में 5 मॉडल स्कूल खोले जाएंगे. स्मार्ट कक्षाओं से लैस अटल विद्यालय बनेंगे. लाइब्रेरियन, पीटीआई और योग्य शिक्षकों की भर्ती का अभियान प्रारंभ किया जाएगा. ब्लॉक मुख्यालय में एक इंग्लिश मीडिया स्कूल खोला जाएगा.
बाकी सब बातें हैं, आप भी ध्यान से देख सकते हैं. कांग्रेस ने विधानसभा के आंकड़ों के आधार पर आरोप पत्र भी निकाला है. इसकी कुछ जानकारियां अगर सही हैं तो हैरान करने वाली हैं. इसमें लिखा है कि राज्य में सर्व शिक्षा अभियान का बजट भी राज्य को कम मिलने लगा है. सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या भी काफी घट गई है. शिक्षकों के 50,000 पद रिक्त हैं. पंचायत संवर्ग के शिक्षकों के 22, 644 पद रिक्त हैं. गणित, फिजिक्स, केमिस्ट्री, अंग्रेज़ी व कामर्स के अधिकांश शिक्षकों की कमी है. शासकीय कॉलेज में प्राध्यपकों के 525 पद स्वीकृत हैं और इतने ही खाली हैं. विधानसभा का हवाला देते हुए लिखा है कि किसी भी कॉलेज में एक भी प्रोफेसर नहीं है.
कांग्रेस के घोषणा पत्र में दिल्ली में आम आदमी की सरकार का भी प्रभाव दिखता है. लिखा है कि निजी स्कूलों एवं कॉलेजों के लिए फीस नियामक आयोग का गठन करेगी. इन सब मुद्दों पर बात करना ज़रूरी है और वादा करने वाली पार्टी की जवाबदेही को फिक्स करना भी. लोग वाकई निजी स्कूलों और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों के मनमाने फीस से परेशान हैं. पर क्या वाकई कांग्रेस उन पर लगाम लगा पाएगी. अगर उसका ऐसा इरादा है तो क्या वह यह बात ज़ोर शोर से जनता को बता रही है.
जबकि मूल कल्पना यही थी कि जनता अपने अपने क्षेत्र में उम्मीदवार चुने और विधानसभा में पहुंचकर विजयी उम्मीदवारों से सरकार चुने. तभी प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को सदन का नेता कहा जाता है, मतलब सदन ने उन्हें अपना नेता चुना है. पर ऐसा नहीं होता है. लेकिन ऐसा ही होना चाहिए कि आप अपना ध्यान इस पर न रखें कि सरकार किसकी बन रही है इस पर ध्यान दें कि आपके वोट से कहीं कोई ग़लत उम्मीदवार तो नहीं जीत रहा है. छत्तीसगढ़ के चुनावों में चार-चार मोर्चा है. एक मोर्चा है रमन सिंह का जो 15 साल से मुख्यमंत्री हैं, चौथी बार बनना चाहते हैं. कांग्रेस पार्टी ने अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है. अजित जोगी की जनता कांग्रेस और मायावती की बसपा का तीसरा मोर्चा है. चौथा मोर्चा है समाजवादी पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी.
छत्तीसगढ़ के चुनावों में हार-जीत का अंतर बहुत कम होता है. 2013 में 0.7 प्रतिशत का था, लेकिन उसके पहले ढाई प्रतिशत का. बीजेपी को 41 प्रतिशत वोट मिले थे और कांग्रेस को 40 प्रतिशत, बसपा को 4 प्रतिशत. इस चौतरफा लड़ाई में कौन जीतेगा, अकेले सरकार बनाएगा या गठबंधन की सरकार बनेगी, इस सवाल का जवाब चुनाव बाद में मिलेगा. 2003 में बसपा को अच्छा वोट मिला था, लेकिन तब मायावती की यूपी में सरकार थी, 2008 में यूपी में सरकार चली गई और मायावती का वोट घट गया. 2013 में और घट गया. इसके बाद भी अगर कांग्रेस-बसपा का गठजोड़ हुआ होता तो 2013 में इस गठबंधन के पास 45 प्रतिशत वोट होते और 51 सीट होती, आराम से सरकार बन जाती. इस बार अजित जोगी और मायावती साथ हैं.
बीजेपी के प्रचार में चेहरा रमन सिंह ही हैं. बीजेपी के पोस्टरों में रमन सिंह का चेहरा ही प्रमुख है. प्रधानमंत्री का चेहरा नहीं है. कांग्रेस के पोस्टर में चेहरा राहुल गांधी का है, मगर स्लोगन की जगह वादा साफ साफ लिखा है जैसे सारे अनियमित कर्मचारी नियमित किए जाएंगे. प्रचार युद्ध में जनता कांग्रेस के पोस्टर कम दिखते हैं.
2013 के विधानसभा चुनावों के बाद 2015-16 के पंचायत चुनावों में बीजेपी की बढ़त में काफी गिरावट आई है. 3 प्रतिशत की कमी. जबकि कांग्रेस ने तीन प्रतिशत की बढ़त हासिल की है. तो किसे जीतने के लिए कितना स्विंग चाहिए. मतलब किसके यहां से वोट घूम कर किसके यहां जा पहुंचेगा और उसकी सरकार बनेगी. 2013 में बीजेपी की सीटें घट गई थीं. 50 से 49 पर आ गईं. ये कोई खास कमी नहीं थी मगर सरकार बन गई. 2013 के चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन जस का तस रहा. 2008 में 38 सीटें थीं, 2013 में भी 39 सीटें ही आईं. छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने के लिए 46 सीटें चाहिएं.
छत्तीसगढ़ की 77 ग्रामीण आबादी है. अनुसूचित जनजाति जो खुद को आदिवासी कहते हैं उनकी आबादी 32 प्रतिशत है. छोटा राज्य है मगर आबादी के हिसाब से इसके चार क्षेत्र हो जाते हैं. एक इलाका है अनुसूचित जनजाति के वर्चस्व का, एक इलाका है हिन्दू मतदाताओं के वर्चस्व का, एक इलाका अनुसूचित जाति का भी है जो 12 प्रतिशत हैं. वैसे तो इस तरह के कार्यक्रम डॉ प्रणॉय रॉय, दोराब सोपारीवाला ही बेहतर करते हैं, ये सारा कुछ उन्हीं के नोटबुक से लेकर बोल रहा हूं. आप समझते हैं कि जिसमें आप बेहतर नहीं होते हैं उसमें आप बेहतर नहीं होते हैं, फिर भी छत्तीसगढ़ को इन आंकड़ों और शब्दावलियों के बहाने देखा जा सकता है. 2018 में अभी तक जो ओपिनियन पोल हुए हैं उनका औसत क्या कहता है. बीजेपी को 45 सीटें मिली हैं, कांग्रेस को 35 सीटें. जोगी और बसपा को 5 वहीं, अन्य को 5 सीटें मिली हैं. ये ओपिनियन पोल जो चैनलों पर चला है, उसका औसत है. क्या होगा, वही बेहतर बता सकते हैं. अभी तक छत्तीसगढ़ में पहले चरण का मतदान हो चुका है और 76.3 प्रतिशत वोट पड़ा है. छत्तीसगढ़ के मुख्यमत्री रमन सिंह से बातचीत आप सुनिए.
प्राइम टाइम की सीरीज़ में हमने शिक्षा और रोज़गार पर काफी ज़ोर दिया है तो देखना चाहेंगे कि इस मामले में बीजेपी और कांग्रेस ने क्या कहा है. पहले बीजेपी का घोषणा पत्र देखा, कुछ खास नहीं लगा, इसकी वजह ये हो सकती है कि सब कुछ 15 साल में हो गया होगा या फिर शिक्षा को लेकर अब बोलने के लिए कुछ बचा नहीं है. इसलिए बीजेपी ने वादा किया है कि हर ब्लाक में 5 मॉडल स्कूल खोले जाएंगे. स्मार्ट कक्षाओं से लैस अटल विद्यालय बनेंगे. लाइब्रेरियन, पीटीआई और योग्य शिक्षकों की भर्ती का अभियान प्रारंभ किया जाएगा. ब्लॉक मुख्यालय में एक इंग्लिश मीडिया स्कूल खोला जाएगा.
बाकी सब बातें हैं, आप भी ध्यान से देख सकते हैं. कांग्रेस ने विधानसभा के आंकड़ों के आधार पर आरोप पत्र भी निकाला है. इसकी कुछ जानकारियां अगर सही हैं तो हैरान करने वाली हैं. इसमें लिखा है कि राज्य में सर्व शिक्षा अभियान का बजट भी राज्य को कम मिलने लगा है. सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या भी काफी घट गई है. शिक्षकों के 50,000 पद रिक्त हैं. पंचायत संवर्ग के शिक्षकों के 22, 644 पद रिक्त हैं. गणित, फिजिक्स, केमिस्ट्री, अंग्रेज़ी व कामर्स के अधिकांश शिक्षकों की कमी है. शासकीय कॉलेज में प्राध्यपकों के 525 पद स्वीकृत हैं और इतने ही खाली हैं. विधानसभा का हवाला देते हुए लिखा है कि किसी भी कॉलेज में एक भी प्रोफेसर नहीं है.
टिप्पणियां
क्या ये सवाल बहस के केंद्र में नहीं होने चाहिए. क्या यह सही है कि
छत्तीसगढ़ के किसी भी शासकीय कॉलेज में एक भी प्रोफेसर नहीं है.
विश्वविद्यालयों में प्रोफसर के लिए 67 पद स्वीकृत हैं और 50 खाली हैं. अगर
कांग्रेस का यह आरोप सही है तो आप इस एंगल से छत्तीसगढ़ के नौजवानों के
भविष्य को देख सकते हैं. बशर्ते भी इस एंगल से अपना भविष्य देखते हों. मानव
संसाधन मंत्रालय ने यूनिवर्सिटी की रैकिंग शुरू की है, लेकिन इसका लाभ
कांग्रेस उठाती दिख रही है. उसके घोषणा पत्र में एक वाक्य इस पर भी है कि
देश के 100 टॉप यूनिवर्सिटी में से एक भी छत्तीसगढ़ की नहीं है. क्या
कांग्रेस अगर सरकार में आई तो वाकई इस क्षेत्र में ईमानदारी से काम करेगी,
आप ज़रा पंजाब से भी पता करें कि क्या वहां कर रही है. कांग्रेस ने वादा
किया है कि वह 50,000 शिक्षकों को बहाल करेगी. बीजेपी ने भी कहा है मगर
संख्या का ज़िक्र नहीं है.कांग्रेस के घोषणा पत्र में दिल्ली में आम आदमी की सरकार का भी प्रभाव दिखता है. लिखा है कि निजी स्कूलों एवं कॉलेजों के लिए फीस नियामक आयोग का गठन करेगी. इन सब मुद्दों पर बात करना ज़रूरी है और वादा करने वाली पार्टी की जवाबदेही को फिक्स करना भी. लोग वाकई निजी स्कूलों और प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों के मनमाने फीस से परेशान हैं. पर क्या वाकई कांग्रेस उन पर लगाम लगा पाएगी. अगर उसका ऐसा इरादा है तो क्या वह यह बात ज़ोर शोर से जनता को बता रही है.