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बच्चों को पढ़ाते खुद 14 डिग्रियां जीतने वाले शिक्षक हार गए जिंदगी

 कोरबा (नईदुनिया प्रतिनिधि)। शिक्षक थे, तो 42 साल पढ़ाया, पर खुद भी एक शिक्षार्थी की भूमिका निभाते रहे। जब नौकरी में आए तो सिर्फ एमएससी की डिग्री थी। फिर बीएड-बीटीआइ व एक-एक कर अनेक विषयों में 11 डिग्री व न जाने कितने डिप्लोमा हर साल बटोरते रहे। वे यहीं न रुके और एलएलबी, एलएलएम के साथ पीएचडी कर दो बार डाक्टरेट की उपाधि भी हासिल की। उम्र के बढ़ते क्रम में नई उपाधियां व डिग्री जीतने के जुनूनी शिक्षक जिंदगी की जंग हार गए। कोरोना की चपेट में आने से डाइट के सेवानिवृत्त व्याख्याता व ख्यातिलब्ध कवि डा यूपी साहू अब हमारे बीच नहीं रहे।

किसी ने सच कहा है कि पढ़ाई की कोई उम्र नहीं होती। जरूरत है तो सिर्फ जज्बे और अध्ययन के लिए समर्पित होने की। विद्वान शिक्षक व कवि रहे स्व. डा यूपी साहू (63) में सुशिक्षित समाज की परिकल्पना चरितार्थ होती है, जो अध्ययन करते रहने के अपने जज्बे व जुनून के बूते हम सभी के लिए किसी मिसाल से कम नहीं थे। जनवरी 1981 से शासकीय सेवा में आए डा साहू जिला शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) कोरबा से 31 जनवरी 2018 को ही रिटायर हुए थे। प्राइवेट व शासकीय सेवा को मिलाकर उन्होंने करीब 42 साल तक अध्यापन कार्य किया। इस दौरान उन्होंने स्कूलों में छात्र-छात्राओं को और उसके बाद शिक्षकों-व्याख्याताओं की कक्षा लेकर उन्हें भी पढ़ाया और प्रशिक्षित किया। अध्यापन के अपने कर्तव्य व जवाबदारी के बीच उन्होंने स्वयं का अध्ययन भी सतत जारी रखा। अपनी रुचि के अनुरूप भिन्ना-भिन्ना विषयों में पढ़ाई करते हुए प्रमाणपत्रों की झड़ी लगाते हुए डिप्लोमा व डिग्रियों का अनोखा संग्रह भी किया है। जब उन्होंने शासकीय सेवा शुरू की थी, तो उनके पास सिर्फ एमएससी वनस्पतिशास्त्र की डिग्री थी, पर जब वे रिटायर हुए तो छह स्नातकोत्तर व दो पीएचडी समेत कुल 14 डिग्री-डिप्लोमा प्राप्त कर चुके थे। उनके डिग्री-डिप्लोमा व उपाधियों में एमएससी, एमए सोशियोलाजी, एमए हिंदी लिट्रेचर, एमए जियोग्राफी, जियोग्राफी एंड हिंदी लिट्रेचर में दो पीएचडी, बीटीसी, बीएड, एलएलबी-एलएलएम, आरएमपी-ज्योतिर्विद, एडवांस स्काउट मास्टर, डिप्लोमा इन एक्युप्रेशर, योगा साइंस, योगा ट्रेनर, लेंग्वेज लर्निंग फाउंडेशन, पीजी डिप्लोमा इन वेल्यु एजुकेशन एंड स्प्रिचुऑलिटी, लेबर ला, लेबर वेल्फेयर शामिल है।

कहते थे- धड़कनों के विराम तक मैं पढ़ता-सीखता रहूंगा

डा साहू के पिताजी, चाचा भी शिक्षक रहे। उनकी पत्नी, भाई व बहुएं भी शिक्षक हैं और इस तरह उनका पूरा कुनबा ही शिक्षक परिवार के रूप में ख्यातिलब्ध है। पिता से मिली सीख के अनुसार उनका मानना था कि व्यक्ति जन्म से लेकर अंतिम घड़ी तक बस सीखता रहता है। सीखने का यह सफर तभी समाप्त होगा, जब उसकी धड़कनों को विराम मिल जाएगा। यही वजह है जो वे जीवनभर निरंतर सीखने के लिए सतत अध्ययन करते रहे। डा साहू कहते थे कि जब तक सीने में सांसें चलती रहेंगी, वे पढ़ते और सीखते रहेंगे।


योग, भूगोलविद, ज्योतिर्विद के बाद विधि में पीएचडी की तैयारी

सर्विस के दौरान छह स्नातकोत्तर डिग्री व दो बार पीएचडी के बाद भी डा साहू में खुद को शिक्षा से जोड़े रखने का ऐसा जुनून था कि रिटायर होने के बाद वे विधिशास्त्र में पीएचडी करने इंट्रेंस की तैयारी में जुट गए थे। एलएलबी वे पहले ही कर चुके थे। वे स्कूल में शिक्षक, डाइट में शिक्षकों के प्रशिक्षक व मास्टर ट्रेनर रहे। वे एक योग गुरु व ज्योतिर्विद भी रहे। भूगोल में एमए के बाद पीएचडी पूरी कर भूगोलविद डाक्टरेट की उपाधि भी हासिल की। वे एडवांस स्काउट मास्टर भी रहे।


नगर के प्रतिष्ठित नागरिक विक्की वासन भी नहीं रहे

युवा समाजसेवी, कोरबा के मिलनसार व प्रतिष्ठित नागरिक विक्की वासन का कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण निधन हो गया। उनका इलाज शहर के निजी अस्पताल में चल रहा था। उपचार के दौरान सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। डाक्टर लगातार उपचार कर रहे थे, पर अंततः उन्हें नहीं बचाया जा सका। उनके असमय चले जाने से पूरे शहर में शोक की लहर है। 

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