राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में बुधवार को दो ऐसे मामले आए जब मंत्रियों ने
अफसरों पर जमकर नाराजगी जताई। सबसे अधिक बवाल उस समय मचा जब शिक्षा,
स्वास्थ्य और पर्यटन जैसे विभागों की नीति बनाने का अधिकार उद्योग विभाग को
देने का लाया गया।
इससे कई मंत्री बिफर पड़े और उन्होंने प्रस्ताव के विरोध में मोर्चा खोल दिया। लगातार मंत्रियों के विरोध के चलते पूरे प्रस्ताव को वापस लेना पड़ा।
कैबिनेट में जैसे ही यह प्रस्ताव आया, मंत्रियों ने यह कहकर विरोध किया कि उनके विभाग का काम उद्योग विभाग क्यों करेगा। हम अपने विभाग का काम करने में सक्षम हैं। वरिष्ठ मंत्रियों ने सिरे से खारिज किया। एक वरिष्ठ मंत्री ने अाक्रामक अंदाज में सीधे कह दिया वे इससे सहमत नहीं हैं और अन्य मंत्री भी अपनी सहमति नहीं दे सकते हैं। उनका कहना था कि यह तो डिपार्टमेंट के बिजनेस रुल बदलने जैसा प्रस्ताव है। एक तरह से यह अधिकार सीज करने जैसा है। एक विभाग के नियम और काम दूसरा विभाग कैसे तय कर सकता है। यह नहींं हो सकता। एक मंत्री ने कहा कि विभागों में काम करने का एक सिस्टम होता है। यह प्रस्ताव उसे खत्म करने वाला है। इस पर अनुमति नहीं दी जा सकती। मंंत्रियों की आपत्ति के बाद प्रस्ताव नामंजूर कर दिया गया है। कहा जा रहा है कि इस तरह के प्रस्ताव से मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह भी सहमत नहीं दिखे। यही वजह है कि उनकी सहमति के बाद प्रस्ताव को वापस लिया गया। इसी प्रकार एक अन्य मामले में अफसरों के जवाब से नाराज मंत्रियों ने खरीखोटी सुनाई। बताते हैं कि जिलों में सरकारी क्वार्टर बनाने का मामला अाया तो अफसर मंत्रियों से उलझ पड़े। यह मामला हाउसिंग बोर्ड और पीडब्लूडी के बीच काम के बंटवारे को लेकर था।
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