बिलासपुर। बिल्हा ब्लॉक के कर्मा-नगपुरा स्कूल में
पदस्थ एक शिक्षाकर्मी पिछले 5 साल से गायब हैं। इसके बाद भी शिक्षा विभाग
से हर माह उनकी सैलरी निकल रही थी। इस बात का खुलासा नोटबंदी के कारण हुआ।
शासन ने कर्मचारियों को वेतन के 10 हजार रुपए नगद भुगतान कराया तो यह राशि
वापस आ गई। ऐसे में अधिकारियों ने उसकी पड़ताल की तो पूरे मामले को खुलासा
हुआ।
शिक्षा विभाग की लापरवाही का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्कूल से लगातार अनुपस्थिति की जानकारी के बाद भी शिक्षाकर्मी का वेतन पिछले 5 साल से जारी हो रहा है। यह सब चलता भी रहता अगर नोटबंदी नहीं होती। केंद्र सरकार ने जैसे ही 500 और 1000 रुपए के नोट बंद किया वैसे ही नगद रुपयों का संकट खड़ा हो गया। ऐसे में राज्य शासन ने अपने कर्मचारियों को राहत देने के लिए एक माह के वेतन से 10 हजार रुपए नगद भुगतान का आदेश दिया। सभी स्कूलों के प्रधान पाठकों को उनके यहां पदस्थ शिक्षकों के लिए नगद 10 हजार रुपए भेजे गए। ऐसे में नगपुरा स्कूल के शिक्षक धर्मेश राठौर के 10 हजार रुपए वापस आ गए। नोट संकट के दौर में पैसे वापस आना अधिकारियों को हजम नहीं हुआ। उन्होंने जांच की तो इस शिक्षाकर्मी के पांच साल से गायब होने की जानकारी मिली। आनन-फानन में शिक्षा विभाग ने संबंधित बैंक से संपर्क कर वेतन के रूप में डाली गई राशि वापस लेकर शासन के खाते में जमा करा दी है।
2011 से कोई अता-पता नहीं
धर्मेश कुमार राठौर की भर्ती 2010 में हुई थी। इसके बाद 20 जून 2011 से वे स्कूल से गायब हैं। इसके बाद भी शिक्षा विभाग की ओर से सैलरी जारी हो रही है। जबकि स्कूल से लगातार अनुपस्थिति आ रही है। जांच में पता चला कि शिक्षाकर्मी ग्राम किरारी सक्ती जिला जांजगीर-चांपा के रहने वाले हैं। उसके द्वारा सर्विस बुक में दिए गए पते पर नोटिस भेजकर उसका जवाब आने की प्रतीक्षा की जा रही हैं।
पहले सैलरी रोक दी गई थी। जब वेब पोर्टेल में वेतन देने का फरमान जारी हुआ तो लिपकीय त्रुटि से वेतन फिर जारी होने लगा। मामले की जानकारी होने पर बैंक से राशि मंगा ली गई है।
एमएल पटेल
बीईओ बिल्हा
इस संबंध में शिकायत मिली थी। ब्लॉक में कितने शिक्षाकर्मी गायब हैं इसकी अधिकारियों को कोई जानकारी नहीं है। इसे देखते हुए निर्णय लिया गया है कि पूरे विकासखंड के शिक्षाकर्मियों का सत्यापन कराया जाएगा।
विक्रम सिंह
उपाध्यक्ष,अध्यक्ष शिक्षा समिति, बिल्हा जनपद
शिक्षा विभाग की लापरवाही का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि स्कूल से लगातार अनुपस्थिति की जानकारी के बाद भी शिक्षाकर्मी का वेतन पिछले 5 साल से जारी हो रहा है। यह सब चलता भी रहता अगर नोटबंदी नहीं होती। केंद्र सरकार ने जैसे ही 500 और 1000 रुपए के नोट बंद किया वैसे ही नगद रुपयों का संकट खड़ा हो गया। ऐसे में राज्य शासन ने अपने कर्मचारियों को राहत देने के लिए एक माह के वेतन से 10 हजार रुपए नगद भुगतान का आदेश दिया। सभी स्कूलों के प्रधान पाठकों को उनके यहां पदस्थ शिक्षकों के लिए नगद 10 हजार रुपए भेजे गए। ऐसे में नगपुरा स्कूल के शिक्षक धर्मेश राठौर के 10 हजार रुपए वापस आ गए। नोट संकट के दौर में पैसे वापस आना अधिकारियों को हजम नहीं हुआ। उन्होंने जांच की तो इस शिक्षाकर्मी के पांच साल से गायब होने की जानकारी मिली। आनन-फानन में शिक्षा विभाग ने संबंधित बैंक से संपर्क कर वेतन के रूप में डाली गई राशि वापस लेकर शासन के खाते में जमा करा दी है।
2011 से कोई अता-पता नहीं
धर्मेश कुमार राठौर की भर्ती 2010 में हुई थी। इसके बाद 20 जून 2011 से वे स्कूल से गायब हैं। इसके बाद भी शिक्षा विभाग की ओर से सैलरी जारी हो रही है। जबकि स्कूल से लगातार अनुपस्थिति आ रही है। जांच में पता चला कि शिक्षाकर्मी ग्राम किरारी सक्ती जिला जांजगीर-चांपा के रहने वाले हैं। उसके द्वारा सर्विस बुक में दिए गए पते पर नोटिस भेजकर उसका जवाब आने की प्रतीक्षा की जा रही हैं।
पहले सैलरी रोक दी गई थी। जब वेब पोर्टेल में वेतन देने का फरमान जारी हुआ तो लिपकीय त्रुटि से वेतन फिर जारी होने लगा। मामले की जानकारी होने पर बैंक से राशि मंगा ली गई है।
एमएल पटेल
बीईओ बिल्हा
इस संबंध में शिकायत मिली थी। ब्लॉक में कितने शिक्षाकर्मी गायब हैं इसकी अधिकारियों को कोई जानकारी नहीं है। इसे देखते हुए निर्णय लिया गया है कि पूरे विकासखंड के शिक्षाकर्मियों का सत्यापन कराया जाएगा।
विक्रम सिंह
उपाध्यक्ष,अध्यक्ष शिक्षा समिति, बिल्हा जनपद