कोरबा. निजी क्षेत्र में संचालित स्कूलों में शिक्षक -शिक्षिकाओं को उनके परिश्रम के अनुसार वेतन व सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं।
शहर में100 से ज्यादा निजी स्कूलों के टीचिंग स्टाफ की स्थिति यह है कि उन्हें वेतन के रूप में दैनिक वेतनभोगी श्रमिक से भी कम मजदूरी मिल रही है।
बड़ी संख्या में स्टाफ को तीन हजार रुपए से लेकर साढ़े चार हजार रुपए तक इनमें से कई स्कूल हर साल शासन से स्वीकृत हर योजना का लाभ भी लेते हैं।
अप्रैल से नया शिक्षण सत्र शुरू होने जा रहा है। शहर के एक दर्जन बड़े स्कूलों को छोड़ दें तो शहर में लगभग सौ ऐसे स्कूल हैं, जहां 12वीं पास युवाओं को यहां पर अस्थायी तौर पर अध्यापन कार्य कराया जा रहा है।
इनको वेतन के रूप में सौ रूपए रोज कि हिसाब से भी दिया जा रहा है। एक या फिर दो शिक्षक पूरा स्कूल संभालते हैं। स्कूल का प्रबंधक ही वहां का प्राचार्य होता है।
शासन का नियम है की अकुशल श्रमिकों की मजदूरी 225 रूपए से कम नहीं होनी चाहिए। तो वहीं मनरेगा के मजदूरों की मजदूरी 172 रूपए तक कर दिया गया है।
लेकिन निजी स्कूलों में बच्चों का भविष्य गणने वाले इन शिक्षकों को देहाड़ी मजदूरी से भी कम वेतन दिया जा रहा है।
प्रति शिक्षक के हिसाब से 60 रूपए करना है जमा
दो साल पहले सरकार ने एक नियम बनाया था, इसके मुताबिक हर निजी स्कूल को अपने हर शिक्षक के एवज मेंं प्रतिमाह 60 रूपए श्रम विभाग को जमा कराना था।
दरअसल निजी स्कूलों में किसी तरह की राशि स्कूल छोडऩे के बाद नहीं मिलती, इसलिए नियम बनाया गया था की स्कूल छोडऩे के बाद श्रम विभाग से एक अच्छी खासी राशि शिक्षक को मिल सके।
ताकि अगर उसे कुछ महिनों तक नौकरी न मिले तो उसका जीवकोपार्जन हो सके। लेकिन हैरत की बात है की कुछ बड़े स्कूलों को छोड़कर किसी भी निजी स्कूल ने इसके लिए रूचि तक नहीं ली।
10 से 15 फीसदी बढ़ायी फीस, लेकिन शिक्षकों का नहीं बढ़ा वेतन
नए सत्र को देखते हुए शिक्षा विभाग ने 10 से 15 फीसदी तक फीस बढ़ा दी है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल स्कूल वही है। शिक्षक वही है। सुविधाएं भी जस की तस है, न तो वेतन शिक्षकों का बढ़ाया गया।
ऐसे में स्कूल प्रबंधक किस सुविधा के नाम पर बच्चों का वेतन बढ़ाने की बात कर रहे हैं। स्कूलों का कहना है की अन्य खर्च के लिए फीस बढ़ानी पड़ती है। जबकि शासन से हर रियायत को लेने में ये स्कूल आगे हैं।
केस-1
कौशिल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय तुलसीनगर-
तुलसीनगर में संचालित इस स्कूल में शिक्षकों की न्यूनतम वेतन 15 सौ है तो अधिकतम 25 सौ रूपए। स्कूल प्राचार्य जगदीश कौशिल का कहना है की सेवा से जुड़े युवा वर्ग है वे दो से तीन घंटे के लिए आते हैं उनको इस तरह का मानदेय दिया जाता है।
केस-2
वीनस सेकेण्डरी स्कूल शारदाविहार कोरबा-
शारदाविहार कॉलोनी में यह स्कूल संचालित है। मान्यता हायर सेकेण्डरी तक की है। लेकिन संचालित हो रही 10वीं तक। स्कूल में डेढ़ दर्जन शिक्षक कार्यरत हैं। लेकिन यहां के शिक्षकों को 15 सौ रूपए से लेकर 25 सौ वेतन दिया जाता है।
केस-3
केजीवी स्कूल राताखार कोरबा-
राताखार बाइपास के समीप संचालित हो रहे इस स्कूल में आठवीं तक की पढ़ाई होती है। स्कूल में 12 शिक्षकों से अध्यापन कार्य करवाया जा रहा है।
प्राचार्य व प्रबंधक एम के बंजारे ने बताया की शिक्षक स्नातक व इससे अधिक पढ़े लिखे हैं लेकिन आय कम है। इसलिए न्यूनतम वेतन 12 सौ रूपए तो चार साल से पढ़ा रहे शिक्षकों को प्रति माह 38 सौ रूपए वेतन दिया जा रहा है।
शिक्षक बुद्धिजीवी अन्य स्टाफ श्रमजीवी
निजी स्कूलों के शिक्षकों के वेतन के मामले में हमारा हस्तक्षेप नहीं होता। दरअसल शिक्षक बुद्धिजीवी के अंतर्गत आते हैं। जबकि स्कूल के अन्य स्टाफ श्रमजीवी।
-विकास सरोदे, सहायक श्रमायुक्त
स्कूल प्रबंधन ही जवाबदार
निजी स्कूलों के शिक्षकों के वेतन के बारे में स्कूल प्रबंधन ही जवाबदार होते हैं। भले वेतन कितना मिले लेकिन उनको नियमों के तहत बच्चों को शिक्षा देनी होती है।
डीके कौशिक, डीईओ, कोरबा
शहर में100 से ज्यादा निजी स्कूलों के टीचिंग स्टाफ की स्थिति यह है कि उन्हें वेतन के रूप में दैनिक वेतनभोगी श्रमिक से भी कम मजदूरी मिल रही है।
बड़ी संख्या में स्टाफ को तीन हजार रुपए से लेकर साढ़े चार हजार रुपए तक इनमें से कई स्कूल हर साल शासन से स्वीकृत हर योजना का लाभ भी लेते हैं।
अप्रैल से नया शिक्षण सत्र शुरू होने जा रहा है। शहर के एक दर्जन बड़े स्कूलों को छोड़ दें तो शहर में लगभग सौ ऐसे स्कूल हैं, जहां 12वीं पास युवाओं को यहां पर अस्थायी तौर पर अध्यापन कार्य कराया जा रहा है।
इनको वेतन के रूप में सौ रूपए रोज कि हिसाब से भी दिया जा रहा है। एक या फिर दो शिक्षक पूरा स्कूल संभालते हैं। स्कूल का प्रबंधक ही वहां का प्राचार्य होता है।
शासन का नियम है की अकुशल श्रमिकों की मजदूरी 225 रूपए से कम नहीं होनी चाहिए। तो वहीं मनरेगा के मजदूरों की मजदूरी 172 रूपए तक कर दिया गया है।
लेकिन निजी स्कूलों में बच्चों का भविष्य गणने वाले इन शिक्षकों को देहाड़ी मजदूरी से भी कम वेतन दिया जा रहा है।
प्रति शिक्षक के हिसाब से 60 रूपए करना है जमा
दो साल पहले सरकार ने एक नियम बनाया था, इसके मुताबिक हर निजी स्कूल को अपने हर शिक्षक के एवज मेंं प्रतिमाह 60 रूपए श्रम विभाग को जमा कराना था।
दरअसल निजी स्कूलों में किसी तरह की राशि स्कूल छोडऩे के बाद नहीं मिलती, इसलिए नियम बनाया गया था की स्कूल छोडऩे के बाद श्रम विभाग से एक अच्छी खासी राशि शिक्षक को मिल सके।
ताकि अगर उसे कुछ महिनों तक नौकरी न मिले तो उसका जीवकोपार्जन हो सके। लेकिन हैरत की बात है की कुछ बड़े स्कूलों को छोड़कर किसी भी निजी स्कूल ने इसके लिए रूचि तक नहीं ली।
10 से 15 फीसदी बढ़ायी फीस, लेकिन शिक्षकों का नहीं बढ़ा वेतन
नए सत्र को देखते हुए शिक्षा विभाग ने 10 से 15 फीसदी तक फीस बढ़ा दी है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल स्कूल वही है। शिक्षक वही है। सुविधाएं भी जस की तस है, न तो वेतन शिक्षकों का बढ़ाया गया।
ऐसे में स्कूल प्रबंधक किस सुविधा के नाम पर बच्चों का वेतन बढ़ाने की बात कर रहे हैं। स्कूलों का कहना है की अन्य खर्च के लिए फीस बढ़ानी पड़ती है। जबकि शासन से हर रियायत को लेने में ये स्कूल आगे हैं।
केस-1
कौशिल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय तुलसीनगर-
तुलसीनगर में संचालित इस स्कूल में शिक्षकों की न्यूनतम वेतन 15 सौ है तो अधिकतम 25 सौ रूपए। स्कूल प्राचार्य जगदीश कौशिल का कहना है की सेवा से जुड़े युवा वर्ग है वे दो से तीन घंटे के लिए आते हैं उनको इस तरह का मानदेय दिया जाता है।
केस-2
वीनस सेकेण्डरी स्कूल शारदाविहार कोरबा-
शारदाविहार कॉलोनी में यह स्कूल संचालित है। मान्यता हायर सेकेण्डरी तक की है। लेकिन संचालित हो रही 10वीं तक। स्कूल में डेढ़ दर्जन शिक्षक कार्यरत हैं। लेकिन यहां के शिक्षकों को 15 सौ रूपए से लेकर 25 सौ वेतन दिया जाता है।
केस-3
केजीवी स्कूल राताखार कोरबा-
राताखार बाइपास के समीप संचालित हो रहे इस स्कूल में आठवीं तक की पढ़ाई होती है। स्कूल में 12 शिक्षकों से अध्यापन कार्य करवाया जा रहा है।
प्राचार्य व प्रबंधक एम के बंजारे ने बताया की शिक्षक स्नातक व इससे अधिक पढ़े लिखे हैं लेकिन आय कम है। इसलिए न्यूनतम वेतन 12 सौ रूपए तो चार साल से पढ़ा रहे शिक्षकों को प्रति माह 38 सौ रूपए वेतन दिया जा रहा है।
शिक्षक बुद्धिजीवी अन्य स्टाफ श्रमजीवी
निजी स्कूलों के शिक्षकों के वेतन के मामले में हमारा हस्तक्षेप नहीं होता। दरअसल शिक्षक बुद्धिजीवी के अंतर्गत आते हैं। जबकि स्कूल के अन्य स्टाफ श्रमजीवी।
-विकास सरोदे, सहायक श्रमायुक्त
स्कूल प्रबंधन ही जवाबदार
निजी स्कूलों के शिक्षकों के वेतन के बारे में स्कूल प्रबंधन ही जवाबदार होते हैं। भले वेतन कितना मिले लेकिन उनको नियमों के तहत बच्चों को शिक्षा देनी होती है।
डीके कौशिक, डीईओ, कोरबा