नीलोत्पल गौरहा/जांजगीर-चांपा. शासन करोड़ों की राशि खर्चकर, कई एनजीओ से समझौता कर राज्य में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है, लेकिन
सही मानिटरिंग नहीं होने की वजह से उक्त योजनाएं जिले में धराशाई हो रही
हैं। राज्य स्तर से जारी गणित किट की रेटींग लिस्ट में जिला 18वें पायदान
पर है, लेकिन जिले के अधिकारी सब ठीक, बता रहे हैं।
स्कूली छात्रों को आधुनिक तरीके से शिक्षा उपलब्ध कराने शासन कई योजनाएं चला रही है। इसी कड़ी में गणित विषय की पढ़ाई कराने शिक्षकों को किट उपलब्ध कराया गया है।
इसके लिए बाकायदा शिक्षकों को ट्रेनिंग भी दी गई है, लेकिन सही मानिटरिंग नहीं होने से जांजगीर का स्थान निचले पायदान पर चला गया है।
इससे जिले में योजनाओं की मानिटरिंग की स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। गौरतलब है कि पूर्व में पत्रिका की टीम ने अपनी पड़ताल में जिले में गणित किट के बारे में
समाचार का प्रकाशन किया था, जिसके बाद हरकत में आए विभाग ने पूरे प्रदेश में इसकी पड़ताल की। राज्य शासन ने एक एनजीओ के माध्यम से प्रदेश के स्कूलों में गणित किट की स्थिति का जायजा लिया,
जिसमें जिले के पिछडऩे की बात सामने आई है। कुल मिलाकर जिले में शिक्षा विभाग की टीम महज कागजी घोड़ों के दम पर शिक्षा की अलख जलाने का दावा कर रही है,
जबकि ग्राउंड रिपोर्ट कुछ और ही बयां कर रही है। संस्था की रिपोर्ट में तीसरी से 5वीं तक के 87 फीसदी बच्चों को शब्द ज्ञान नहीं होने का खुलासा हुआ है। गणित ज्ञान की स्थिति और भी खराब है।
अधिकांश बच्चों को जोडऩा, घटना, भाग देना नहीं आता। शिक्षा गुणवत्ता वर्ष के बीच आई इस रिपोर्ट ने शिक्षा विभाग को भी चिंता में डाल दिया है।
शहरी व ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों का यही हाल है। पालक इसका कारण शिक्षकों की लापरवाही को बता रहे हैं। मिडिल स्कूलों के बच्चों की हालत भी ठीक नहीं है।
6वीं से 8वीं तक के अनेक बच्चों को 10 तक पहाड़ा भी नहीं आता। इसका खुलासा शिक्षा विभाग के अधिकारियों की जांच में भी हो चुका है।
मुंबई की संस्था ने घर-घर जाकर 51 हजार बच्चों से सवाल पूछे थे और बच्चों से एक फार्मेट भी भराया था। इस आंकलन में अधिकांश बच्चे कमजोर मिले थे।
पालक रमेश यादव, राजेश राठौर, सीताराम श्रीवास आदि ने कहा कि पहले बच्चे स्कूल से गायब मिलते थे, अब शिक्षक स्कूल से गायब हो रहे हैं।
स्कूली छात्रों को आधुनिक तरीके से शिक्षा उपलब्ध कराने शासन कई योजनाएं चला रही है। इसी कड़ी में गणित विषय की पढ़ाई कराने शिक्षकों को किट उपलब्ध कराया गया है।
इसके लिए बाकायदा शिक्षकों को ट्रेनिंग भी दी गई है, लेकिन सही मानिटरिंग नहीं होने से जांजगीर का स्थान निचले पायदान पर चला गया है।
इससे जिले में योजनाओं की मानिटरिंग की स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। गौरतलब है कि पूर्व में पत्रिका की टीम ने अपनी पड़ताल में जिले में गणित किट के बारे में
समाचार का प्रकाशन किया था, जिसके बाद हरकत में आए विभाग ने पूरे प्रदेश में इसकी पड़ताल की। राज्य शासन ने एक एनजीओ के माध्यम से प्रदेश के स्कूलों में गणित किट की स्थिति का जायजा लिया,
जिसमें जिले के पिछडऩे की बात सामने आई है। कुल मिलाकर जिले में शिक्षा विभाग की टीम महज कागजी घोड़ों के दम पर शिक्षा की अलख जलाने का दावा कर रही है,
जबकि ग्राउंड रिपोर्ट कुछ और ही बयां कर रही है। संस्था की रिपोर्ट में तीसरी से 5वीं तक के 87 फीसदी बच्चों को शब्द ज्ञान नहीं होने का खुलासा हुआ है। गणित ज्ञान की स्थिति और भी खराब है।
अधिकांश बच्चों को जोडऩा, घटना, भाग देना नहीं आता। शिक्षा गुणवत्ता वर्ष के बीच आई इस रिपोर्ट ने शिक्षा विभाग को भी चिंता में डाल दिया है।
शहरी व ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों का यही हाल है। पालक इसका कारण शिक्षकों की लापरवाही को बता रहे हैं। मिडिल स्कूलों के बच्चों की हालत भी ठीक नहीं है।
6वीं से 8वीं तक के अनेक बच्चों को 10 तक पहाड़ा भी नहीं आता। इसका खुलासा शिक्षा विभाग के अधिकारियों की जांच में भी हो चुका है।
मुंबई की संस्था ने घर-घर जाकर 51 हजार बच्चों से सवाल पूछे थे और बच्चों से एक फार्मेट भी भराया था। इस आंकलन में अधिकांश बच्चे कमजोर मिले थे।
पालक रमेश यादव, राजेश राठौर, सीताराम श्रीवास आदि ने कहा कि पहले बच्चे स्कूल से गायब मिलते थे, अब शिक्षक स्कूल से गायब हो रहे हैं।