रायपुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। राज्य सरकार शिक्षा पर
अपने बजट से सबसे ज्यादा खर्च कर रही है। फिर भी स्कूली शिक्षा का हाल
बदहाल है। शिक्षा को प्राथमिकता दिए जाने के बाद भी तीसरी के सिर्फ 22
प्रतिशत बच्चे ही दूसरी कक्षा का पाठ पढ़ पाते हैं।
शिक्षा के स्तर की देशव्यापी पड़ताल करने वाली एजेंसी असर (एनुअल स्टेटस आफ एजुकेशन रिपोर्ट) की वर्ष 2016 की ताजा रिपोर्ट इसे बयां कर रही है।
पांचवीं के 55.9 प्रतिशत बच्चे दूसरी स्तर के पाठ पढ़ पा रहे हैं। गणित में पहली के 40 प्रतिशत बच्चे अभी भी 1 से लेकर 9 तक के अंक नहीं जानते हैं। ये तब स्थिति है, जब राज्य में शिक्षा के लिए हर साल बजट बढ़ रहा है। बजट के पैसों को खपाने के लिए शिक्षा विभाग ने योजनाएं तो बनाईं, लेकिन वे फेल हो गईं। लिहाजा पैसों को खर्च कर विभाग ने बैकफुट पर आकर योजनाएं ही बंद कर दीं।
दूसरे राज्यों ज्यादा शिक्षा बजट, फिर भी फिसड्डी
जब साल 2000 में छत्तीसगढ़ अलग राज्य बना, उस समय अपने बजट से शिक्षा के लिए खर्च करने वाला अग्रणी राज्य बिहार हुआ करता था। बिहार अपने बजट का 23.7 फीसदी शिक्षा पर खर्च करता था। महाराष्ट्र अपने बजट का 22.3 फीसदी, राजस्थान 18.8 फीसदी, तमिलनाडु 18 फीसदी खर्च करता था। उस समय छत्तीसगढ़ लगभग सबसे पीछे था। 2001 में छत्तीसगढ़ के बजट से शिक्षा पर महज 13.1 फीसदी ही खर्च किए थे, लेकिन साल 2014-15 में छत्तीसगढ़ ने शिक्षा में सबसे ज्यादा 20.5 फीसदी खर्च किया।
कुछ प्रमुख योजनाएं, जिन्होंने तोड़ दिया दम
स्मार्ट स्कूल प्रोजेक्टः साल 2014 में माशिमं ने हाई एवं हायर सेकंडरी स्कूलों के शिक्षा स्तर को बढ़ाने के लिए 20 स्कूलों में स्मार्ट स्कूल का कॉन्सेप्ट शुरू किया। लाखों रुपए खर्च किए, फिर बंद कर दी। हाई स्कूल में एक दशक से 50 से 56 प्रतिशत और हायर सेकंडरी में 70 से 73 प्रतिशत रिजल्ट आ रहा है।
नाइट सेल्टर्सः शाला त्यागी बच्चों के लिए लाखों रुपए खर्च कर नाइट सेल्टर्स और पलायन करने वाले मजदूरों, श्रमिकों के बच्चों के लिए हॉस्टल्स योजना व ब्रिज कोर्स की प्रक्रिया बंद हो चुकी है।
एमजीएमएलः बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाने के लिए 2007 में मल्टी ग्रेड मल्टी लेवल (एमजीएमएल) सिस्टम लागू किया गया। 12 करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च हुए। राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्(एससीईआरटी)28 हजार स्कूलों के बच्चों को किट बांटे और शिक्षकों को प्रशिक्षित भी किया था। फिर योजना बंद कर दी।
उड़ानः ईसीसीई(अर्ली चाइल्डहुड केयर एड्यूकेशन) के तहत राज्य में 3 से 6 साल के बच्चों में संवेदनात्मक, भावनात्मक, भाषागत विकास करने के लिए ईसीसीई के लिए एससीईआरटी ने मॉड्यूल एवं उड़ान किट तैयार किया था। लाखों रुपए खर्च करने के बाद यह प्रोजेक्ट भी मरणासन्न है।
कैलः कम्प्यूटर एडेड लर्निंग बेस्ड कैल प्रोजेक्ट स्कूल शिक्षा विभाग का है। इसके लिए करोड़ों रुपए खर्च कर कुछ स्कूलों में कम्प्यूटर की व्यवस्था कराई गई। बाद में योजना ने दम तोड़ दिया।
लैंग्वेज क्लबः एससीईआरटी की ओर से गांव के स्कूली बच्चों एवं ग्रामीणों के बीच एक क्लब बनाकर अंग्रेजी सिखाने के लिए लाखों खर्च कर राज्य सरकार की ओर से चलाई गई इंग्लिश लर्निंग लैंग्वेज क्लब ने भी दम तोड़ दिया है। कुछ साल तक यह गांव के स्कूलों में चलाई गई बाद में मॉनिटरिंग नहीं होने से क्लब ही निष्क्रिय हो गए।
एक्टिव लर्निंग मेथडः बच्चों को स्कूल में ही व्यवहारिक ज्ञान देकर माइंड मैपिंग, दो चीजों के तुलनात्मक अध्ययन कराकर एक्टिव लर्निंग मेथड योजना चली थी। शिक्षकों को प्रशिक्षित किया गया और बाद में फंड के अभाव में योजना बंद हो गई।
सीसीई, टीचर्स ट्रेनिंगः सतत समग्र मूल्यांकन की पद्धति महज खानापूर्ति बनकर रह गई है। स्कूल के बच्चों को भी यह जानकारी नहीं है कि उनकी परीक्षा भले ही न हो, लेकिन सीसीई हो रहा है। अस्सी फीसदी स्कूलों के शिक्षक इसे महज खानापूर्ति मान रहे हैं। पहले प्रशिक्षण 20 दिन के लिए होता था अभी 5 दिन के लिए चल रहा है।
लाइब्रेरी हबः प्राइमरी और मिडिल स्कूलों में भी करोड़ों रुपए देकर मिनी लाइब्रेरी योजना बनाई थी। एससीईआरटी ने कुछ स्कूलों में बच्चों के लिए किताबें भिजवाईं, लेकिन लाइब्रेरी के लिए जगह नहीं मिलने से इन किताबों को दीमक खा रहे हैं।
ये भी हो चुकी हैं फ्लॉप
- जीवन विद्याः हर शिक्षक को मानवीय मूल्यों की शिक्षा देने की योजना
- कम्प्यूटर लैंग्वेज योजनाः कम्प्यूटर के जरिए लैंग्वेज सिखाने के लिए योजना
- सामाख्या योजनाः स्कूलों में खेल एवं वाद्य सामग्री देना
- डीपीईपी योजनाः सीखने और सिखाने की योजना
- ऑपरेशन ब्लैक बोर्डः शिक्षकों की कमी दूर करने की योजना
- ईजीएस सिस्टमः गांव-मोहल्ले में गुरुजी स्थापित कर नई स्कूल खोलना
- नॉन फार्मल एजुकेशनः अनुदेशकों की ट्रेनिंग होती थी।
- मॉडल स्कूल प्रोजेक्टः पहले सरकार ने संचालित किया, अब निजी हाथों में सौंप दी
ऐसे बढ़ा स्कूल शिक्षा का बजट
साल -- बजट
2011-12 - 2577
2012-13 - 4509
2013-14 - 5195
2014-15 - 6298
2015- 16 - 7412
2016-17 - 11144
(राशिः करोड़ रुपए )
पिछले दो वर्ष में सुधार हुआ है। अब भी काफी सुधार की गुंजाइश है। शासन सही दिशा में काम कर रहा है। - विकास शील, सचिव, स्कूल शिक्षा
शिक्षा के स्तर की देशव्यापी पड़ताल करने वाली एजेंसी असर (एनुअल स्टेटस आफ एजुकेशन रिपोर्ट) की वर्ष 2016 की ताजा रिपोर्ट इसे बयां कर रही है।
पांचवीं के 55.9 प्रतिशत बच्चे दूसरी स्तर के पाठ पढ़ पा रहे हैं। गणित में पहली के 40 प्रतिशत बच्चे अभी भी 1 से लेकर 9 तक के अंक नहीं जानते हैं। ये तब स्थिति है, जब राज्य में शिक्षा के लिए हर साल बजट बढ़ रहा है। बजट के पैसों को खपाने के लिए शिक्षा विभाग ने योजनाएं तो बनाईं, लेकिन वे फेल हो गईं। लिहाजा पैसों को खर्च कर विभाग ने बैकफुट पर आकर योजनाएं ही बंद कर दीं।
दूसरे राज्यों ज्यादा शिक्षा बजट, फिर भी फिसड्डी
जब साल 2000 में छत्तीसगढ़ अलग राज्य बना, उस समय अपने बजट से शिक्षा के लिए खर्च करने वाला अग्रणी राज्य बिहार हुआ करता था। बिहार अपने बजट का 23.7 फीसदी शिक्षा पर खर्च करता था। महाराष्ट्र अपने बजट का 22.3 फीसदी, राजस्थान 18.8 फीसदी, तमिलनाडु 18 फीसदी खर्च करता था। उस समय छत्तीसगढ़ लगभग सबसे पीछे था। 2001 में छत्तीसगढ़ के बजट से शिक्षा पर महज 13.1 फीसदी ही खर्च किए थे, लेकिन साल 2014-15 में छत्तीसगढ़ ने शिक्षा में सबसे ज्यादा 20.5 फीसदी खर्च किया।
कुछ प्रमुख योजनाएं, जिन्होंने तोड़ दिया दम
स्मार्ट स्कूल प्रोजेक्टः साल 2014 में माशिमं ने हाई एवं हायर सेकंडरी स्कूलों के शिक्षा स्तर को बढ़ाने के लिए 20 स्कूलों में स्मार्ट स्कूल का कॉन्सेप्ट शुरू किया। लाखों रुपए खर्च किए, फिर बंद कर दी। हाई स्कूल में एक दशक से 50 से 56 प्रतिशत और हायर सेकंडरी में 70 से 73 प्रतिशत रिजल्ट आ रहा है।
नाइट सेल्टर्सः शाला त्यागी बच्चों के लिए लाखों रुपए खर्च कर नाइट सेल्टर्स और पलायन करने वाले मजदूरों, श्रमिकों के बच्चों के लिए हॉस्टल्स योजना व ब्रिज कोर्स की प्रक्रिया बंद हो चुकी है।
एमजीएमएलः बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाने के लिए 2007 में मल्टी ग्रेड मल्टी लेवल (एमजीएमएल) सिस्टम लागू किया गया। 12 करोड़ से ज्यादा रुपए खर्च हुए। राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद्(एससीईआरटी)28 हजार स्कूलों के बच्चों को किट बांटे और शिक्षकों को प्रशिक्षित भी किया था। फिर योजना बंद कर दी।
उड़ानः ईसीसीई(अर्ली चाइल्डहुड केयर एड्यूकेशन) के तहत राज्य में 3 से 6 साल के बच्चों में संवेदनात्मक, भावनात्मक, भाषागत विकास करने के लिए ईसीसीई के लिए एससीईआरटी ने मॉड्यूल एवं उड़ान किट तैयार किया था। लाखों रुपए खर्च करने के बाद यह प्रोजेक्ट भी मरणासन्न है।
कैलः कम्प्यूटर एडेड लर्निंग बेस्ड कैल प्रोजेक्ट स्कूल शिक्षा विभाग का है। इसके लिए करोड़ों रुपए खर्च कर कुछ स्कूलों में कम्प्यूटर की व्यवस्था कराई गई। बाद में योजना ने दम तोड़ दिया।
लैंग्वेज क्लबः एससीईआरटी की ओर से गांव के स्कूली बच्चों एवं ग्रामीणों के बीच एक क्लब बनाकर अंग्रेजी सिखाने के लिए लाखों खर्च कर राज्य सरकार की ओर से चलाई गई इंग्लिश लर्निंग लैंग्वेज क्लब ने भी दम तोड़ दिया है। कुछ साल तक यह गांव के स्कूलों में चलाई गई बाद में मॉनिटरिंग नहीं होने से क्लब ही निष्क्रिय हो गए।
एक्टिव लर्निंग मेथडः बच्चों को स्कूल में ही व्यवहारिक ज्ञान देकर माइंड मैपिंग, दो चीजों के तुलनात्मक अध्ययन कराकर एक्टिव लर्निंग मेथड योजना चली थी। शिक्षकों को प्रशिक्षित किया गया और बाद में फंड के अभाव में योजना बंद हो गई।
सीसीई, टीचर्स ट्रेनिंगः सतत समग्र मूल्यांकन की पद्धति महज खानापूर्ति बनकर रह गई है। स्कूल के बच्चों को भी यह जानकारी नहीं है कि उनकी परीक्षा भले ही न हो, लेकिन सीसीई हो रहा है। अस्सी फीसदी स्कूलों के शिक्षक इसे महज खानापूर्ति मान रहे हैं। पहले प्रशिक्षण 20 दिन के लिए होता था अभी 5 दिन के लिए चल रहा है।
लाइब्रेरी हबः प्राइमरी और मिडिल स्कूलों में भी करोड़ों रुपए देकर मिनी लाइब्रेरी योजना बनाई थी। एससीईआरटी ने कुछ स्कूलों में बच्चों के लिए किताबें भिजवाईं, लेकिन लाइब्रेरी के लिए जगह नहीं मिलने से इन किताबों को दीमक खा रहे हैं।
ये भी हो चुकी हैं फ्लॉप
- जीवन विद्याः हर शिक्षक को मानवीय मूल्यों की शिक्षा देने की योजना
- कम्प्यूटर लैंग्वेज योजनाः कम्प्यूटर के जरिए लैंग्वेज सिखाने के लिए योजना
- सामाख्या योजनाः स्कूलों में खेल एवं वाद्य सामग्री देना
- डीपीईपी योजनाः सीखने और सिखाने की योजना
- ऑपरेशन ब्लैक बोर्डः शिक्षकों की कमी दूर करने की योजना
- ईजीएस सिस्टमः गांव-मोहल्ले में गुरुजी स्थापित कर नई स्कूल खोलना
- नॉन फार्मल एजुकेशनः अनुदेशकों की ट्रेनिंग होती थी।
- मॉडल स्कूल प्रोजेक्टः पहले सरकार ने संचालित किया, अब निजी हाथों में सौंप दी
ऐसे बढ़ा स्कूल शिक्षा का बजट
साल -- बजट
2011-12 - 2577
2012-13 - 4509
2013-14 - 5195
2014-15 - 6298
2015- 16 - 7412
2016-17 - 11144
(राशिः करोड़ रुपए )
पिछले दो वर्ष में सुधार हुआ है। अब भी काफी सुधार की गुंजाइश है। शासन सही दिशा में काम कर रहा है। - विकास शील, सचिव, स्कूल शिक्षा