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रिटायरमेंट नजदीक, प्रमोशन नहीं, सैकड़ों शिक्षक-प्राध्यापकों को 7वें पे-ग्रेड में नुकसान

प्रदेश में सैकड़ों सहायक प्राध्यापक व सहायक शिक्षक 10 से 20 वर्षों से पदोन्नति का इंतजार कर रहे हैं। अब भी समय पर प्रमोशन नहीं मिला तो उन्हें सातवें वेतनमान में बड़ा नुकसान होगा। इनमें से कई रिटायरमेंट की दहलीज पर हैं।
प्रोफेसरों की कमी से जूझ रहे उच्च शिक्षा विभाग में दस साल बाद पदोन्नति भी हुई तो वह विवादों में घर गई है। सहायक प्राध्यापक से प्राध्यापक के पद पर जिन नियमों व मापदंडों के आधार पर पदोन्नति दी गई उसे सहायक प्राध्यापक गलत बता रहे हैं। उनका कहना है कि उच्च शिक्षा विभाग ने कुछ नियम थोपकर उन्हें पदोन्नति से वंचित कर दिया है।

महानदी में मंत्रालय में पदोन्नति से वंचित ऐसे ही सहायक प्राध्यापकों ने विभाग के मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय से शिकायत की। उन्होंने कहा कि बार-बार निवेदन के बाद भी हक न मिलने पर वे हताश हैं। ये नियम न तो राज्य सरकार द्वारा अनुमोदित हैं और न ही यूजीसी द्वारा। जबकि 800 सहायक प्राध्यापक ऐसे हैं जो 10 साल से लेकर 25 सालों से प्रमोशन के इंतजार में रिटायरमेंट की दहलीज पर पहुंच गए हैं। नियमानुसार हर साल पदोन्नति देने का प्रावधान है।

विभाग की पदोन्नति समिति ने 2016 में वाह्य अकादमी मूल्यांकन पत्रक के आधार पर पात्रता परीक्षा ली। इसका भर्ती नियम 1990 में कहीं भी प्रावधान नहीं है। न ही यूजीसी ने ऐसा कोई नियम निकाला है। सभी सहायक प्राध्यापक पीएससी से चयनित होकर विभाग में सेवाएं दे रहे हैं। वे सभी भर्ती एवं पदोन्नति नियम 1990 के तहत पदोन्नति की पात्रता रखते हैं। उनमें से कई तो 25 वर्षों से सेवाएं दे रहे हैं। अब पीड़ित सहायक प्राध्यापक कोर्ट जाने का मन बना रहे हैं। मंत्री पांडेय ने उन्हें नियमानुसार कदम उठाने की सलाह दी है। इस मामले को लेकर वे विभागीय अपर मुख्य सचिव सुनील कुजूर से मिले। उन्होंने बताया कि विभाग में 2006 में अंतिम बार यूजीसी के नियमों से पदोन्नति हुई थी। पदोन्नति में विलंब से उनकी उम्र भी बार हो रही है। ।

नया नियम जो सहायक प्राध्यापकों तक पहुंचा ही नहीं और पदोन्नति हो गई: सहायक प्राध्यापकों ने भास्कर को बताया कि उच्च शिक्षा संचालनालय ने बाह्य अकादमिक मूल्यांकन प्रतिवेदन नाम से नया नियम थोप दिया। सहायक प्राध्यापकों ने दावा किया कि इस नियम को कुछ सलेक्टेड सहायक प्राध्यापकों को बताया गया जिनका चयन किया जाना था।

यदि विभाग इसकी जानकारी सभी सहायक प्राध्यापकों तक पहुंचाता तो हमारा दावा है कि केवल छह महीने में वे ही बाह्य अकादमिक मूल्यांकन प्रतिवेदन को पूरा कर लेते।
इसमें कुल अंक 50 रखे गए।

इसमें आईएसबीएन द्वारा प्रमाणित प्रकाशित पुस्तक का लेखक होने पर 5 और अधिकतम 10 अंक और आईएसबीएन द्वारा प्रमाणित प्रकाशित पुस्तक का सहलेखक होने पर ढाई और अधिकतम पांच अंक देने का प्रावधान किया गया। अंतरराष्ट्रीय स्तर के शोध पत्र प्रकाशन पर जिसका इंपैक्ट फैक्टर हो पांच से 20 अंक देने और राष्ट्रीय स्तर के शोध पत्र प्रकाशन पर जिसका इंपैक्ट फैक्टर हो ढाई से दस अंक देने का प्रावधान है। शिक्षा के नवीन्मेषी नवीन पाठ्यक्रम या पाठ्यचर्चा आदि की रचना पर ढाई से पांच अंक देने का प्रावधान किया गया है। इसमें न्यूनतम योग्यतांक 35 रखे हैं।

0 सहायक शिक्षक भी तरस रहे 10 - 20 साल से प्रमोशन के लिए -

इधर, सहायक शिक्षकों को 10 एवं 20 वर्ष सेवा के बाद भी पदोन्नति के लिए तरस रहे हैं। उन्हें क्रमोन्नत वेतनमान न देने से राज्य शासन के आदेश का भी उल्लंघन हो रहा है। अब सातवें वेतनमान के वेतन निर्धारण में भी वेतन में कमी से नुकसान होगा। क्रमोन्नत वेतनमान के देय तिथि के पहले एवं बाद में पदोन्नति तिथि रहने के स्थिति अनुसार जहां कुछ मामलों में वेतन में वृद्धि नहीं हो रहा है, तो वहीं कुछ मामलों में वेतन में कमी हो रहा है। वेतन निर्धारण नियमों के दृष्टिगत शासन को समयमान वेतनमान स्वीकृत करने का सुझाव दिया था। लेकिन ऐसा न होने से क्रमोन्नत वेतनमान स्वीकृत करने के विभागीय निर्णय का खामियाजा सहायक शिक्षक पद पर नियुक्त हुए शिक्षक संवर्ग को भुगतना पड़ रहा है।

वेतन निर्धारण में उत्पन्न हुए विसंगति के कारणों की जानकारी छत्तीसगढ़ प्रदेश शिक्षक फेडरेशन ने भी शासन को दी है। राज्य में सहायक शिक्षक संवर्ग की सर्वाधिक संख्या है। टी एवं ई संवर्ग में इनमें से कुछ दो क्रमोन्नति लेकर यथावत हैं, तो अनेक प्रधानपाठक प्राथमिक शाला,उच्च वर्ग शिक्षक और व्याख्याता के पद पर पदोन्नति के बाद कार्यरत हैं। वेतन निर्धारण के कारण वेतन में हुई कमी से प्रभावितों का सातवें वेतन निर्धारण में कमी होगा। फेडरेशन ने समाधान के लिए तीन सूत्रीय सुझाव दिए हैं।

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