केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने परीक्षा प्रणाली में सुधार के
लिए अपने सॉफ्टवेयर को दुरुस्त कर लिया है। इससे नंबरिंग और टोटलिंग में
गलतियां बंद हो जाएंगी।
पिछले साल परिणाम में गलतियों में सुधार के लिए जोड़े गए आउट लायर सॉफ्टवेयर को पूरी तरह फुलप्रूफ कर दिया गया है। अब यह परिणाम जारी होने से पहले ही छात्रों की उत्तर पुस्तिका व अन्य विषयों में मिले परिणामों का तुलनात्मक अध्ययन कर, कहां गलती हुई है, उसे पकड़ेगा। मार्कशीट में गलतियों को दुरुस्त करने के लिए छात्रों को पांच साल का समय दिया जाएगा। इससे पहले एक साल का वक्त मिलता था।
जब तक गलती को दुरुस्त नहीं किया जाएगा, सॉफ्टवेयर से रिजल्ट तैयार करने का ग्रीन सिग्नल नहीं मिलेगा। इससे पहले स्तर पर ही 100 फीसदी करेक्ट रिजल्ट जारी होगा। इसके बाद भी अगर छात्रों को कोई आपत्ति है तो उत्तर पुस्तिका की फोटो कॉपी हासिल कर अपनी परेशानी बोर्ड को दर्ज करा सकेंगे। यह बातें सीबीएसई की नई चेयरपर्सन अनिता करवाल ने कही। उन्होंने बताया कि छात्रों को फोकस में रखकर बोर्ड द्वारा निर्णय लिए जा रहे हैं।
अभी तक यह थी व्यवस्था : परीक्षा में इस बार 1.5 करोड़ उत्तर पुस्तिकाएं थीं। परीक्षा के बाद जैसे ही कॉपी मूल्यांकन केंद्र में पहुंचती हैं, पहले उस पर बार कोडिंग की जाती है। इससे यह न पता चल सके कि उत्तर पुस्तिका किस छात्र की है। हर परीक्षा केंद्र में एक चीफ नोडल सुपरवाइजर (सीएनएस) होता है। उनके अधीन चार टीमें होती हैं। इनमें हेड ऑफ एग्जामिनेशन, सहायक मुख्य परीक्षक और विषय के शिक्षक। सीएनएस बतौर सब्जेक्ट एक्सपर्ट चुना जाता है, जो काफी सीनियर मोस्ट होते हैं। कॉपी मूल्यांकन से पहले बोर्ड कार्यालय में विषय एक्सपर्ट की एक मीटिंग बुलाकर पूरा प्रश्नपत्र हल किया जाता है। विषय एक्सपर्ट के जवाबों के अनुसार तीन से चार पेज के वेल्यू प्वाइंट तैयार किए जाते हैं, इसी का फाइनलाइजेशन मार्किंग स्कीम होती है। इसकी मार्किंग स्कीम के आधार पर उत्तर पुस्तिकाएं जांची जाती हैं।
कॉपी जांचने के लिए 10 से 15 साल का अनुभव जरूरी : दसवीं के छात्रों की कॉपी टीजीटी (ट्रेंड ग्रेजुएट टीचर) और बारहवीं के छात्रों की कॉपी पीजीटी (पोस्ट ग्रेजुएट टीचर) जांचते हैं। इन शिक्षकों को 10 से 15 साल का टीचिंग अनुभव होना जरूरी है। सबसे पहले शिक्षकों से सैंपल के तौर पर कुछ उत्तर पुस्तिकाएं जंचवाई जाती हैं। जिसे सीएनएस और उनकी टीम चैक करती है, इसके बाद उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन शुरू होता है। हर शिक्षक 6 से 7 घंटे में अधिकतम 25 कॉपियां एक दिन में जांच पाता है। शिक्षकों को यह निर्देश होते हैं कि कॉपी जांचने के दौरान वह जिस प्रश्न के जवाब में अंक दे रहे हैं, उसे उत्तर पुस्तिका के सबसे पहले पेज पर मार्किंग बॉक्स में भरते चलें। इसके बाद मूल्यांकन केंद्र पर ही बोर्ड ने सॉफ्टवेयर लगाए हैं, जहां से बार-कोड के अनुसार कॉपी पर मिले अंकों को सॉफ्टवेयर में चढ़ाया जाता है। जिस दिन रिजल्ट जारी होता है, उसी दिन छात्र के अंकों को डिकोड किया जाता है। क्योंकि परीक्षा प्रणाली की गोपनीयता जरूरी है, ताकि स्टूडेंट्स और उनकी कॉपियाें की पहचान न हो सके।
अब यह होगा : सॉफ्टवेयर में कॉपी के अंक चढ़ने के बाद जैसे ही कंपाइलिंग का बटन दबेगा, सॉफ्टवेयर एरर पकड़ लेगा और रेड कलर को एरर फ्री करने के लिए ग्रीन करना होगा। इसके लिए जो एरर है उसे सुधारने की दिशा में पूरा प्रोसेस दोबारा अपनाया जाएगा।
पिछले साल परिणाम में गलतियों में सुधार के लिए जोड़े गए आउट लायर सॉफ्टवेयर को पूरी तरह फुलप्रूफ कर दिया गया है। अब यह परिणाम जारी होने से पहले ही छात्रों की उत्तर पुस्तिका व अन्य विषयों में मिले परिणामों का तुलनात्मक अध्ययन कर, कहां गलती हुई है, उसे पकड़ेगा। मार्कशीट में गलतियों को दुरुस्त करने के लिए छात्रों को पांच साल का समय दिया जाएगा। इससे पहले एक साल का वक्त मिलता था।
जब तक गलती को दुरुस्त नहीं किया जाएगा, सॉफ्टवेयर से रिजल्ट तैयार करने का ग्रीन सिग्नल नहीं मिलेगा। इससे पहले स्तर पर ही 100 फीसदी करेक्ट रिजल्ट जारी होगा। इसके बाद भी अगर छात्रों को कोई आपत्ति है तो उत्तर पुस्तिका की फोटो कॉपी हासिल कर अपनी परेशानी बोर्ड को दर्ज करा सकेंगे। यह बातें सीबीएसई की नई चेयरपर्सन अनिता करवाल ने कही। उन्होंने बताया कि छात्रों को फोकस में रखकर बोर्ड द्वारा निर्णय लिए जा रहे हैं।
अभी तक यह थी व्यवस्था : परीक्षा में इस बार 1.5 करोड़ उत्तर पुस्तिकाएं थीं। परीक्षा के बाद जैसे ही कॉपी मूल्यांकन केंद्र में पहुंचती हैं, पहले उस पर बार कोडिंग की जाती है। इससे यह न पता चल सके कि उत्तर पुस्तिका किस छात्र की है। हर परीक्षा केंद्र में एक चीफ नोडल सुपरवाइजर (सीएनएस) होता है। उनके अधीन चार टीमें होती हैं। इनमें हेड ऑफ एग्जामिनेशन, सहायक मुख्य परीक्षक और विषय के शिक्षक। सीएनएस बतौर सब्जेक्ट एक्सपर्ट चुना जाता है, जो काफी सीनियर मोस्ट होते हैं। कॉपी मूल्यांकन से पहले बोर्ड कार्यालय में विषय एक्सपर्ट की एक मीटिंग बुलाकर पूरा प्रश्नपत्र हल किया जाता है। विषय एक्सपर्ट के जवाबों के अनुसार तीन से चार पेज के वेल्यू प्वाइंट तैयार किए जाते हैं, इसी का फाइनलाइजेशन मार्किंग स्कीम होती है। इसकी मार्किंग स्कीम के आधार पर उत्तर पुस्तिकाएं जांची जाती हैं।
कॉपी जांचने के लिए 10 से 15 साल का अनुभव जरूरी : दसवीं के छात्रों की कॉपी टीजीटी (ट्रेंड ग्रेजुएट टीचर) और बारहवीं के छात्रों की कॉपी पीजीटी (पोस्ट ग्रेजुएट टीचर) जांचते हैं। इन शिक्षकों को 10 से 15 साल का टीचिंग अनुभव होना जरूरी है। सबसे पहले शिक्षकों से सैंपल के तौर पर कुछ उत्तर पुस्तिकाएं जंचवाई जाती हैं। जिसे सीएनएस और उनकी टीम चैक करती है, इसके बाद उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन शुरू होता है। हर शिक्षक 6 से 7 घंटे में अधिकतम 25 कॉपियां एक दिन में जांच पाता है। शिक्षकों को यह निर्देश होते हैं कि कॉपी जांचने के दौरान वह जिस प्रश्न के जवाब में अंक दे रहे हैं, उसे उत्तर पुस्तिका के सबसे पहले पेज पर मार्किंग बॉक्स में भरते चलें। इसके बाद मूल्यांकन केंद्र पर ही बोर्ड ने सॉफ्टवेयर लगाए हैं, जहां से बार-कोड के अनुसार कॉपी पर मिले अंकों को सॉफ्टवेयर में चढ़ाया जाता है। जिस दिन रिजल्ट जारी होता है, उसी दिन छात्र के अंकों को डिकोड किया जाता है। क्योंकि परीक्षा प्रणाली की गोपनीयता जरूरी है, ताकि स्टूडेंट्स और उनकी कॉपियाें की पहचान न हो सके।
अब यह होगा : सॉफ्टवेयर में कॉपी के अंक चढ़ने के बाद जैसे ही कंपाइलिंग का बटन दबेगा, सॉफ्टवेयर एरर पकड़ लेगा और रेड कलर को एरर फ्री करने के लिए ग्रीन करना होगा। इसके लिए जो एरर है उसे सुधारने की दिशा में पूरा प्रोसेस दोबारा अपनाया जाएगा।