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प्राइवेट और सरकारी स्कूल के बीच के फर्क को कम कर रहे हैं शिक्षक साहू

छत्तीसगढ़ में गरियाबंद जिले के एक सरकारी स्कूल के शिक्षक ने प्राइवेट और महंगे स्कूल में अच्छी पढ़ाई और सरकारी सस्ते स्कूलों पढ़ाई न होने की लोगों की अवधारणा को बदल दिया है.


दरअसल, शिक्षक देवानंद साहू की बदौलत प्राइमरी स्कूल के सभी बच्चे कान्वेंट स्कूल के बच्चों की तरह अंग्रेजी पढ़ते, लिखते और बोलते हैं.

बता दें कि गरियाबंद जिला मुख्यालय से करीब 6 किलोमीटर दूर कोटनेछापर प्राइमरी स्कूल के शिक्षक देवानंद साहू की लगन और जनून से स्कूल के सभी बच्चे इंग्लिश पढ़ने, लिखने और बोलने में एक्सपर्ट हो गए हैं.

पहली क्लास के बच्चे हो या दूसरी, तीसरी, चौथी या फिर पांचवी क्लास के सभी बच्चों की इंग्लिश में पकड़ कान्वेंट स्कूल के बच्चों से कम नहीं है. स्कूल के शिक्षक देवानंद साहू बच्चों को बेहतर शिक्षा देना अपना जुनून मानते हैं. भले ही उनके स्कूल में संसाधनों की कमी है, लेकिन वो अपने मकसद के सामने संसाधनों को बौना साबित कर इन बच्चों को नई दिशा देने में लगे हैं.

कोटनेछापर प्राइमरी स्कूल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां पढ़ने वाले सभी 22 बच्चे आदिवासी हैं. ऐसे में अनपढ़ मां-बाप अपने नन्हें बच्चों को अंग्रेजी में बोलते देखकर फुले नहीं समा रहे हैं. पालक भी मानते हैं कि उनके बच्चों को ये सबकुछ सिखाना इतना आसान नहीं है.

लिहाजा, पालक इसका श्रेय शिक्षक देवानंद साहू को देते हुए उनकी तारिफ करते नहीं थक रहे हैं. कोटनेछापर स्कूल के बारे में आदिम जाति कल्याण विभाग के जिला अधिकारी एस. के. वाहने ने कहा कि वो शिक्षक के इस कार्य से काफी प्रभावित हैं.

इसी क्रम में उन्होंने खुद स्कूल का दौरा करने और दूसरे स्कूल के शिक्षिकों को बेहतर करने के उद्देश्य से स्कूल का दौरा करवाने का आश्वसन दिया है.

बहरहाल, स्कूल सरकारी हो या फिर कान्वेंट, दाखिले के समय सभी बच्चों की उम्र और दिमाग एक जैसी ही होती है. कान्वेंट स्कूलों में शिक्षक मेहनत कर बच्चों को लायक बना देते हैं, वहीं सरकारी स्कूलों में शिक्षक संसाधनों का रोना रोकर अपनी जिम्मेदारी से पीछा छुड़ा लेते हैं.

ऐसे में सरकारी स्कूलों में देवानंद साहू जैसे शिक्षकों की बेहद जरूरत है, ताकि बच्चों का उज्जवल भविष्य बन सके. सरकारी स्कूलों में शिक्षक देवानंद की तरह अगर दूसरे शिक्षक भी पढ़ाने की जिम्मेदारी समझ लें तो वो दिन दूर नहीं जब शिक्षित और संपन्न लोग भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने पर गर्व महसूस करेंगे.

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