पाटन। नईदुनिया न्यूज
पाटन का कॉलेज दुर्ग जिले के ग्रामीण क्षेत्र का प्रथम कॉलेज है। सन 1989 से संचालित कालेज में अभी तक समुचित सुविधा का अभाव बना हुआ है। जिले के अन्य कॉलेज की अपेक्षा इस कॉलेज का विकास नहीं दिखा लिहाजा 30 साल पहले के सेटअप पर आज भी कॉलेज चल रहा है।
जब से लेकर दर्ज संख्या 69 से बढ़कर 15 हो गई लेकिन स्टाफ नहीं बढ़े। यहां के बधो होनहार तो हैं लेकिन सुविधाओं के अभाव के कारण प्रतिभा उपेक्षित हो रही है।
पाटन कॉलेज उपेक्षित है इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि सन 1989 में जब कॉलेज प्रारम्भ हुआ तो विद्यार्थियों की दर्ज संख्या 69 थी तब शासन के उधा शिक्षा विभाग ने एक प्राचार्य, 13 प्राध्यापक, एक स्पोर्ट ऑफिसर का सेटअप दिया था, लेकिन 30 साल बाद अब दर्ज संख्या 1500 से भी अधिक हो गई है, लेकिन शिक्षा देने वालों की संख्या नही बढ़ी ऐसे में उधा शिक्षा के लिये क्या उम्मीद की जा सकती है।
कॉलेज जनभागीदारी पर रहा निर्भर
इन बीते 30 वर्षो में महाविद्यालय में प्रगति नहीं हुई ऐसी बात नहीं। जो भी प्रगति हुई वह जन भागीदारी के माध्यम से हुई है। आज 13 विषय स्नातक एवं स्नातकोत्तर की नौ क्लास संचालित हो रही है। स्नातकोत्तर की क्लास जन भागदारी एवं स्ववितीय से संचालित हो रही है। ज्ञात हो कि पीजी की क्लास सन 2011 से संचालित हो रही है। आठ साल बाद भी शासन नौ पीजी क्लास में शासकीय प्राध्यापक की नियुक्ति नहीं कर पाया है जिसके कारण क्षेत्र के ग्रामीण परिवेश के छात्र छात्राओं को अत्यधिक आर्थिक बोझ पड़ता है। जबकि नियमतः तीन साल बाद शासकीय हो जाना चाहिए। मजे की बात यह है आज तक पीजी क्लास के लिये पद भी स्वीकृत नहीं किया गया है। नौ पीजी क्लासेस के लिये 18 प्रधायपक की नियुक्ति एवं 5 कार्यालयीन कर्मचारी का वेतन जन भागदारी से दिया जाता है। इस तरह विद्यार्थियों से लिया गया जन भागीदारी का शुल्क का 80 प्रतिशत हिस्सा इनके वेतन में निकल जाता है जिससे कॉलेज के अन्य विकासः कार्य नहीं हो पाते।
कई विषयों के भी पीजी क्लास नहीं
आज के समय में उधा शिक्षा के लिये इंग्लिश का बहुत ही महत्व हो गया है। इस कॉलेज में भी अंग्रेजी साहित्य विषय की पढ़ाई जरूरी है। इसके अलावा फिजिक्स एवं एवं कामर्स की क्लास की आवश्यकता है जिसे सरकार के माध्यम से पूरा किया जाना चाहिये।
प्राचार्य का पद रिक्त
जिले की राजनीती में जबरदस्त दखल रखने वाले पाटन के इस कॉलेज में एक साल से अधिक समय हो गया। प्राचार्य का पद रिक्त है। डॉ.कल्पना शर्मा के स्वेच्छिकसेवानिवृत्ति होने के पश्चात नए प्राचार्य की नियुक्ति नहीं हुई है जिससे बहुत काम समय पर नहीं हो पाते।
गर्ल्स हॉस्टल शुरू नहीं
पाटन कॉलेज परिसर में गर्ल्स हॉस्टल छह साल से बनकर तैयार है फर्नीचर भी है। स्टाफ के अंतर्गत महिला वार्डन के अलावा अन्य पद भी मंजूर किया जा चुका है, लेकिन सुरक्षा के हिसाब से हॉस्टल में बाउंड्री वाल नहीं बन पाया है जिसके चलते हॉस्टल प्रारम्भ नहीं हो पा रहा है। इस कॉलेज में लड़कियों की संख्या कुल दर्ज संख्या के 60 प्रतिशत के आसपास है। यहां पीजी करने अन्य जिलों से पढ़ने आते है ऐसे में इन छात्राओं को किराया का मकान ही सहारा होता है। इसके अलावा प्रारम्भ से ही जूलॉजी विषय में प्रयोगशाला तकनीशियन का पद ही स्वीकृत नहीं किया गया है जिससे प्रेक्टिकल के अलावा अन्य समय में विद्यार्थियों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
पाटन का कॉलेज दुर्ग जिले के ग्रामीण क्षेत्र का प्रथम कॉलेज है। सन 1989 से संचालित कालेज में अभी तक समुचित सुविधा का अभाव बना हुआ है। जिले के अन्य कॉलेज की अपेक्षा इस कॉलेज का विकास नहीं दिखा लिहाजा 30 साल पहले के सेटअप पर आज भी कॉलेज चल रहा है।
जब से लेकर दर्ज संख्या 69 से बढ़कर 15 हो गई लेकिन स्टाफ नहीं बढ़े। यहां के बधो होनहार तो हैं लेकिन सुविधाओं के अभाव के कारण प्रतिभा उपेक्षित हो रही है।
पाटन कॉलेज उपेक्षित है इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि सन 1989 में जब कॉलेज प्रारम्भ हुआ तो विद्यार्थियों की दर्ज संख्या 69 थी तब शासन के उधा शिक्षा विभाग ने एक प्राचार्य, 13 प्राध्यापक, एक स्पोर्ट ऑफिसर का सेटअप दिया था, लेकिन 30 साल बाद अब दर्ज संख्या 1500 से भी अधिक हो गई है, लेकिन शिक्षा देने वालों की संख्या नही बढ़ी ऐसे में उधा शिक्षा के लिये क्या उम्मीद की जा सकती है।
इन बीते 30 वर्षो में महाविद्यालय में प्रगति नहीं हुई ऐसी बात नहीं। जो भी प्रगति हुई वह जन भागीदारी के माध्यम से हुई है। आज 13 विषय स्नातक एवं स्नातकोत्तर की नौ क्लास संचालित हो रही है। स्नातकोत्तर की क्लास जन भागदारी एवं स्ववितीय से संचालित हो रही है। ज्ञात हो कि पीजी की क्लास सन 2011 से संचालित हो रही है। आठ साल बाद भी शासन नौ पीजी क्लास में शासकीय प्राध्यापक की नियुक्ति नहीं कर पाया है जिसके कारण क्षेत्र के ग्रामीण परिवेश के छात्र छात्राओं को अत्यधिक आर्थिक बोझ पड़ता है। जबकि नियमतः तीन साल बाद शासकीय हो जाना चाहिए। मजे की बात यह है आज तक पीजी क्लास के लिये पद भी स्वीकृत नहीं किया गया है। नौ पीजी क्लासेस के लिये 18 प्रधायपक की नियुक्ति एवं 5 कार्यालयीन कर्मचारी का वेतन जन भागदारी से दिया जाता है। इस तरह विद्यार्थियों से लिया गया जन भागीदारी का शुल्क का 80 प्रतिशत हिस्सा इनके वेतन में निकल जाता है जिससे कॉलेज के अन्य विकासः कार्य नहीं हो पाते।
आज के समय में उधा शिक्षा के लिये इंग्लिश का बहुत ही महत्व हो गया है। इस कॉलेज में भी अंग्रेजी साहित्य विषय की पढ़ाई जरूरी है। इसके अलावा फिजिक्स एवं एवं कामर्स की क्लास की आवश्यकता है जिसे सरकार के माध्यम से पूरा किया जाना चाहिये।
जिले की राजनीती में जबरदस्त दखल रखने वाले पाटन के इस कॉलेज में एक साल से अधिक समय हो गया। प्राचार्य का पद रिक्त है। डॉ.कल्पना शर्मा के स्वेच्छिकसेवानिवृत्ति होने के पश्चात नए प्राचार्य की नियुक्ति नहीं हुई है जिससे बहुत काम समय पर नहीं हो पाते।
पाटन कॉलेज परिसर में गर्ल्स हॉस्टल छह साल से बनकर तैयार है फर्नीचर भी है। स्टाफ के अंतर्गत महिला वार्डन के अलावा अन्य पद भी मंजूर किया जा चुका है, लेकिन सुरक्षा के हिसाब से हॉस्टल में बाउंड्री वाल नहीं बन पाया है जिसके चलते हॉस्टल प्रारम्भ नहीं हो पा रहा है। इस कॉलेज में लड़कियों की संख्या कुल दर्ज संख्या के 60 प्रतिशत के आसपास है। यहां पीजी करने अन्य जिलों से पढ़ने आते है ऐसे में इन छात्राओं को किराया का मकान ही सहारा होता है। इसके अलावा प्रारम्भ से ही जूलॉजी विषय में प्रयोगशाला तकनीशियन का पद ही स्वीकृत नहीं किया गया है जिससे प्रेक्टिकल के अलावा अन्य समय में विद्यार्थियों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।