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अब कॉमिक्स के जरिए मातृभाषा में बच्चे करेंगे पढ़ाई

रायपुर। परम्परागत शिक्षा और शिक्षण पद्धति से ऊब चुके बच्चों को अब कॉमिक्स के जरिए पढ़ाया जाएगा। पहली-दूसरी के बच्चों को कॉमिक्स के जरिए पाठ को रोचक बनाकर पढ़ाने के लिए शिक्षकों को ट्रेनिंग दी जा रही है। कॉमिक्स क्षेत्रीय बोली यानी जिस बोली को बच्चा घर में सीखता है, उसी के हिसाब से कॉमिक्स बना कर पढ़ाया जाएगा। बस्तर अंचल में खासकर हल्बी, भतरी मातृभाषा के बच्चों सबसे पहले कॉमिक्स के जरिए
पढ़ाया जाएगा। इसके लिए 25 से 29 मई तक पांच दिन विषय विशेषज्ञ शरद शर्मा शिक्षकों को कॉमिक्स बनाकर पढ़ाना सिखाएंगे।
कॉमिक्स पद्धति से पढ़ाने का प्रस्ताव राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद(एससीईआरटी) ने तैयार किया है। इसी सत्र से हल्बी और भतरी भाषी इलाकों के बच्चों पर प्रयोग किया जाएगा। दूरस्थ अंचल के शिक्षकों को कॉमिक्स बनाने की ट्रेनिंग दी जा रही है। कॉमिक्स पढ़ाने के साथ-साथ बच्चों को भाषायी कौशल विकास होने का दावा किया जा रहा है।
ऐसे करेंगे कॉमिक्स का इस्तेमाल
हिन्दी, छत्तीसगढ़ी के अलावा क्षेत्रीय बोलियों जैसे सरगुजिहा, कुंडुख, हल्बी, गोंडी, भतरी आदि में पढ़ाने के साथ-साथ इनमें हिंदी, छत्तीसगढ़ी, सरगुजिहा, कुंडुख, हल्बी, गोंडी कांकेर, गोंडी दंतेवाड़ा शामिल हैं। पहली कक्षा में हिंदी में चूहा शब्द को छत्तीसगढ़ी में मुसवा पढ़ाया जा रहा है। अब इसके साथ कॉमिक्स में भी मुसवा को दिखाया जाएगा। हालांकि इसके लिए कोई अतिरिक्त किताब नहीं छापी जाएगी। शिक्षक ही कहानी, लोकगीत, कविताएं एवं अन्य को कॉमिक्स के जरिए पढ़ाएंगे।
कहानीः कहानी में किसी भी पात्र को शिक्षक कॉमिक्स के जरिए स्पष्ट करेंगे। इसमें उनके संवादों के बीच शरीर की विभिन्न मुद्राएं , आंख, नाक, कान, सिर , चेहरा आदि बनाया जाएगा। यदि कोई शोर करता है तो कहानी के साथ-साथ शिक्षक शोर करते हुए कॉमिक्स को दिखाएंगे।
कविताः कविता की हर लाइन को रोचक बनाने के लिए पढ़ाने के साथ-साथ शिक्षक कविता की लाइन के हिसाब से कॉमिक्स बनाएंगे। जैसे आलू कचालू बेटा कहां गए थे..., बैंगन की टोकरी में सो रहे थे.., इस कविता को पढ़ाने के साथ-साथ शिक्षक कॉमिक्स के जरिए बच्चों को यह दृश्य भी बताएंगे।
लोकगीतः खासकर लोकगीतों में त्योहार, उत्सव, मेला, नदी, पर्वत, जंगल आदि का वर्णन करते समय कॉमिक्स के जरिए शिक्षक ब्लैक बोर्ड या फिर किसी कागज पर कॉमिक्स उकेरेंगे।
कॉमिक्स की आवश्यकता क्यों ?
एससीईआरटी के अधिकारियों का क हना है कि तमाम रिसर्च के बाद पता चला है कि प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में निवास कर रही जनजातियों के बच्चों की अपनी अलग बोलियां हैं। स्कूल के किताब की भाषा और बच्चे की बोली में अंतर होने के कारण बच्चा स्कूल में कुछ समझ नहीं पाता है। घर में भी उसे पढ़ने का वातावरण नहीं होने से उसकी पढ़ाई में अरुचि हो जाती है, लिहाजा ड्रॉपआउट होने की स्थिति बढ़ जाती है। कॉमिक्स से यदि शिक्षक पढ़ाएगा तो बच्चों को यह कहानी की तरह रुचिकर लगेगा और वह पढ़ने में मन लगाएगा।
पहली-दूसरी के बच्चों को अभी तक उनकी भाषा में पढ़ाया जा रहा था, लेकिन अब पाठ को रुचिकर बनाने के लिए कॉमिक्स का इस्तेमाल करके पढ़ाने की तैयारी की है। इसके लिए शिक्षकों को कॉमिक्स बनाने के लिए ट्रेनिंग देंगे। - संजय ओझा, संचालक, एससीईआरटी
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