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पीटीआई, विज्ञान के शिक्षकों के भरोसे हो रही हायर सेकेंडरी में कृषि की पढ़ाई

जिले के 6 हायर सेकेंडरी स्कूलों में कृषि का कोर्स शुरू करने के बाद शिक्षा विभाग इन स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति करना भूल गया है। सालों से विषय विशेषज्ञ शिक्षक नहीं होने के कारण वर्तमान में इनमें पीटीआई एवं साइंस मैथ्स के शिक्षकों के भरोसे ही काम चलाऊ पढ़ाई हो रही है और इस विषय से पढ़ाई करने वाले छात्रों का रिजल्ट खराब हो रहा है।
स्कूलों में शिक्षा गुणवत्ता वर्ष मनाने एवं वोकेशनल कोर्स शुरू करने वाला शिक्षा विभाग अपने पुराने पाठ्यक्रम को ही संचालित नहीं कर पा रहा है। सालों पहले जिले में भी 6 स्कूलों में एग्रीकल्चर की पढ़ाई शुरू की गई थी। कृषि को व्यवसायिक पाठ्यक्रम बनाकर हरित |
क्रांति के लिए युवाओं को तैयार करने के उद्देश्य से शासन ने इसकी शुरूआत की थी और रायगढ़ के कोतरा, खरसिया के सोडका, धरमजयगढ़ के छाल, सारंगढ़ घरघोड़ा एवं लैलूंगा की हायर सेकेंडरी स्कूलों में एग्रीकल्चर की पढ़ाई शुरू की गई थी। भास्कर ने जब एग्रीकल्चर की पढ़ाई की सच्चाई जानने के लिए स्कूलों का सर्वे किया तो सच्चाई सामने आ गई। 11 वीं से शुरू हाेने वाले एग्रीकल्चर के इस कोर्स में फसल उत्पादन, पशुपालन व विज्ञान व उसके सहायक तत्व जैसे विषयों की पढ़ाई होती है और इसके लिए नियमों के अनुसार एग्रीकल्चर सब्जेक्ट में एमएससी किए हुए लेक्चरर से ही पढ़ाई कराई जानी चाहिए लेकिन वर्तमान में सभी स्कूलों में एग्रीकल्चर पढ़ाने के लिए जोड़-तोड़ वाली वैकल्पिक व्यवस्था ही अपनाई जा रही है। इस विषय से व्याख्याता पंचायत नहीं होने पर गणित, बायलॉजी, कामर्स एवं पीटीआई से लेकर छात्रावास अधीक्षक के भरोेसे पढ़ाई हो रही है।

कोतरा हा.से.स्कूल में मिडिल स्कूल की विज्ञान की शिक्षिका पढ़ा रही एग्रीकल्चर

बिना लैब व प्रेक्टिकल- इस विषय में ना तो लैब की व्यवस्था है और ना ही प्रेक्टिकल कराने के लिए जरूरी संसाधन स्कूलों के पास हैं। नियमों के अनुसार इसमें खेती के उपकरणों से लेकर आधुनिक यंत्रों एवं गाय बैल के साथ पशुओं के संबंध में भी प्रायोगिक प्रशिक्षण दिया जाना है लेकिन स्कूलों में किताबी ज्ञान ही दिया जा रहा है।

स्कूल में सालाें से एग्रीकल्चर विषय में शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है। इसलिए वैकल्पिक उपायों से पढ़ाई करा रहे हैं। इस विषय के शिक्षकों की भर्ती करने के लिए हर बार मांग की जाती है। एलएन पटेल, बीईओ

इस विषय में दोनों कक्षाओं में 200 से ज्यादा बच्चे हैं। एग्रीकल्चर की पढ़ाई के लिए फुलटाइम टीचर नहीं है। साइंस मैथ्स के शिक्षकों के साथ इस विषय के जानकारों से पढ़ाई करा रहे हैं। डीके वर्मा, बीईओ , लैलूंगा

वाेकेशनल कोर्स के रूप में इसे शुरू किया गया था लेकिन टीचर नहीं होने से पढ़ाई के साथ लैब एवं प्रेक्टिकल में भी परेशानी आती है। अब शिक्षकों की नियुक्ति करना हमारे बस में है भी नहीं। बीके सिंह, बीईओ,घरघोड़ा

केस 1- रायगढ़ का कोतरा हायर सेकेंडरी स्कूल में बारहवीं में 109 छात्रों में से 88 एग्रीकल्चर पढ़ने वाले हैं। स्कूल की पहचान एग्रीकल्चर की पढ़ाई के लिए ही है लेकिन शिक्षक एक भी नहीं है। वर्तमान में फसल उत्पादन, पशुपालन एवं इसके दूसरे विषयों के लिए गणित एवं बायलॉजी के शिक्षकों के अलावा पीटीआई व मिडिल स्कूल के शिक्षकों का सहयोग लिया जा रहा है।

केस 2- लैलूंगा के हायर सेकेंडरी स्कूल में भी एग्रीकल्चर की पढ़ाई वर्तमान में हो रही है। स्कूल के रिकार्ड के अनुसार 11 वीं में इस विषय में 102 और 12 वीं में 105 छात्र अध्ययनरत हैं लेकिन एग्रीकल्चर की पढ़ाई के लिए यहां भी कोई स्थायी व्यवस्था नहीं है। स्कूल में छात्रावास अधीक्षक से लेकर कला, कामर्स एवं साइंस के शिक्षक एग्रीकल्चर का पाठ पढ़ा रहे हैं।

बीईओ कह रहे भर्ती हमारे बस में नहीं, मांग कर रहे लेकिन शिक्षा विभाग नहीं सुन रहा

समाधान - शासन से शिक्षकों की भर्ती नहीं हो रही है। एग्रीकल्चर से डिग्री व पीजी करने वाले स्टूडेंट्स को शिक्षाकर्मी की जगह दूसरे एवं बेहतर अवसर मिल जाते हैं। सरकारी कालेजों में भी इस विषय की पढ़ाई शुरू हो तो शिक्षकों के साथ इन छात्रों को भी बेहतर अवसर मिल सकेगा।

नुकसान - विषय विशेषज्ञ शिक्षकों के नहीं होने से स्कूलों में बेहतर ढंग से पढ़ाई नहीं हो पा रही है। कोतरा में तो इस विषय के करीब 80 प्रतिशत छात्र थर्ड डिविजन में पास हो रहे हैं और बाकी स्कूलों में भी शिक्षक नहीं होने से अमूमन यही हालात हैं। जिससे छात्रों को नुकसान हो रहा है।

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