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Govt Jobs : Opening

सरकार की सख्ती से 10 % शिक्षाकर्मी स्कूल लौटे, भाजपा विधायक-महापौर के समर्थन से यहां 90% अब भी आंदोलन में डटे

भिलाई. संविलियन और समान काम, समान वेतन की मांग को लेकर शिक्षाकर्मियों का प्रदर्शन और उग्र होता जा रहा है। सरकार भी दबाव बनाने में लगी है। नोटिस मिलने के बाद केवल 10 फीसदी ही शिक्षाकर्मियों की वापसी हो सकी है। अपने परिवार की चिंता में शिक्षाकर्मियों का संघर्ष और तेज होता चला है।
नियमित शिक्षकों की तरह समान काम कर प्रदेशभर में शिक्षा का स्तर बेहतर करने वाले शिक्षाकर्मी को उनका ही हक देने सरकार पीछे हट रही है।
सरकार भी जानती है कि उनकी मांग को मानना यानी सरकार के बजट में सीधे 9 सौ करोड़ महीने का अतिरिक्त भार उठाना है। अविभाजित मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ बनने के 1९ साल तक लगातार अपनी मांगों को लेकर समय-समय पर शिक्षाकर्मी एक हुए और कुछ अपनी मांगें भी मनवाई। पर इस बार उनका संघर्ष कुछ अलग नजर आ रहा है। स्कूलों में शिक्षकों की कमी को पूरा करने 1998 में हुई शिक्षाकर्मियों की भर्ती की कई बार प्रक्रियाएं भी बदली।
उन्हें बदला पर सरकार नहीं बदली
समय के साथ-साथ शिक्षाकर्मियों की योग्यता में बदलाव किया गया। बीएड-डीएड अनिवार्यता के साथ आरटीई एक्ट ने शिक्षक पात्रता परीक्षा पास करना भी अनिवार्य कर दिया। शिक्षाकर्मी बनने बेरोजागर युवाओं ने हजारों खर्च कर सारी योग्यता भी हासिल की। नौकरी लगी तो जिम्मेदारियों का बोझ भी बढ़ा पर उनकी सुविधाएं नहीं बढ़ी। हालात यह है कि शिक्षाकर्मियों को एक नियमित चपरासी के समकक्ष वेतन मिलता है।
सालाना 10 हजार करोड़ का बोझ
सरकार का तर्क है कि शिक्षाकर्मियों के संविलियन और समान काम समान वेतन की मांग को मान लिया जाएगा तो सरकार के सालाना बजट पर सीधे 10 हजार 8 सौ करोड़ रुपए को बोझ पड़ेगा। कुल बजट का यह एक बड़ा हिस्सा है। शिक्षाकर्मियों की मानें तो सरकार पूरे बजट को गिन रही है, जबकि इसमें से तो 75 फीसदी राशि केन्द्र से आती है, तो शासन को कैसा बोझ? जबकि हर वर्ष नियमित शिक्षक भी तो सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
17 साल में 15 कमेटी फिर भी नतीजा शून्य
2004- राउत कमेटी- हर साल 20-20प्रतिशत शिक्षाकर्मियों का मूल पदों पर संविलियन किया जाए, शेष को पुनरीक्षित वेतनमान 2007 हाईपावर कमेटी- अनुशंसा का खुलासा नहीं, तत्कालीन मुख्य सचिव नारायण सिंह की अध्यक्षता में गठित की गई कमेटी ने भरोसा दिलाया था कि शिक्षाकर्मियों का वेतन चपरासी से कम नहीं होगा। पंचायती राज अधिनियमि की धारा 243 के अनुसार शिक्षाकर्मी राज्य शासन के कर्मचारी नहीं है। वे पंचायतों के अधीन है। उनकी नियुक्ति व सेवा शर्तों में संविलियन का उल्लेख ही नहीं है। इसके लिए राज्य शासन को नियमों में ही संशोधन करना होगा।
इस मामले में अहिवारा विधायक व जिला भाजपा अध्यक्ष सांवलाराम डाहरे ने कहा कि शिक्षाकर्मी संघ के लोग मिलने आए थे, उन्हें समझाया है कि एक साथ पूरी मांगें पूरी नहीं हो सकती। सरकार धीरे-धीरे विचार करेगी। खासकर संविलियन की मांग पर कैबिनेट में ही कुछ फैसला हो सकता है। महापौर चंद्रिका चंद्राकर ने बताया कि उनके पास शिक्षाकर्मी आए थे, उन्होंने कहा कि उनकी मांगों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार होना चाहिए।
सरकार का जो भी निर्णय होगा उन्हें उसे मानना भी चाहिए। इसमें मेरे समर्थन जैसी कोई बात नहीं है। राजेश चटर्जी, प्रांताध्यक्ष छत्तीसगढ़ प्रदेश शिक्षक फेडरेशन शिक्षाकर्मी ने कहा कि अपने अधिकार के लिए लोकतांत्रिक तरीके से आंदोलन कर रहे हैं। समान काम समान वेतन व संविलियन की उनकी मांगें जायज है। सरकार को उनके शासकीयकरण करने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए।
2012 में आश्वासन के बाद खा गए धोखा
सरकार ने शासकीय शिक्षकों के समतुल्य वेतनमान देने की घोषणा की। छठें वेतनमान पर सहमति जताकर पुनरीक्षित वेतनमान थमा दिया। गृहभाड़ा भत्ता (ग्रामीण 7 और शहरी 10 प्रतिशत), चिकित्सा भत्ता 200 और गतिरोध भत्ता 6 00 रुपए देकर बाद में वापस ले लिए। अनुकंपा नियुक्ति के प्रावधान में टीईटी डीएड व बीएड जैसी शर्र्ते जोड़ दी गई। बाद में सचिव पर नियुक्ति का आदेश जारी किया। अब इसे भी वापस ले लिया।
शासन की चेतावनी के बावजूद शनिवार को 3357 हड़ताली शिक्षाकर्मियों में से मात्र 36 ही स्कूल लौटे। 7 परीविक्षा अवधि वाले और दूसरे गांवों और शहरों से स्थानांतरित होकर आए 105 में से 57 ने अपनी ज्वाइनिंग दी। 48 अब भी हड़ताल पर हैं। जिला पंचायत के मुताबिक उन्हें सोमवार को प्रथम सत्र तक की मोहलत और दी गई है।
इसके बाद उनका स्थानांतरण रद्द कर मूल शाला में वापस भेज दिया जाएगा। इनके अलावा 22 संकुल समन्वयकों ने भी अपना काम संभाल लिया है। 163 लोग हड़ताल में शामिल नहीं हुए थे। परीविक्षा अवधि वाले 15 और अन्य 9 लोग पहले ही लौट चुके थे। इस तरह 309 शिक्षाकर्मी अब तक स्कूल लौट चुके हैं।

आरटीई के नियम भी जाने
2009 में लागू शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा 66 में स्पष्ट लिखा है कि पैरा शिक्षक की नियुक्ति नहीं की जा सकती। शिक्षक पद पर ही भर्ती ही देनी है। केन्द्र के समान सारी सुविधाएं देने का भी उल्लेख किया गया है। जबकि यहां नियमित शिक्षकों की भर्ती ही वर्षो से बंद है। पूरा स्कूल शिक्षाकर्मियों के भरोसे चल रहा है।

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