रायपुर. यदि आप छात्रों को अपने बच्चों की तरह नहीं पढ़ा सकते तो आप शिक्षक बनने के योग्य नहीं हैं. शिक्षकीय पेशा महान कार्य है. एक शिक्षक पर पूरे समाज और देश की उम्मीदें टिकी हुई हैं. इसलिए शिक्षक को पूरे समर्पित भाव से कार्य करने की जरूरत है. महज नौकरी की नीयत से अध्यापन कार्य करने वाले इस पेशे के स्तर को गिरा रहे हैं. रूंगटा इंटरनेशनल स्कूल में आयोजित इंडिया स्कूल प्रिंसिपल कांफ्रेंस में बतौर मुख्य अतिथि आईआईएम के डायरेक्टर बीएस सहाय ने यह बातें कहीं. उन्होंने कहा कि शिक्षक का कार्य ज्ञान बांटना होता है. इसके लिए खुद भी ज्ञान प्राप्त करना जरूरी है.
इसके लिए सतत् अध्ययन की जरूरत है. आज जो परिदृश्य देखने मिल रहा है उसमें शिक्षकीय पेशे में अवसादग्रस्त और रोजगार की चाह में बेरोजगार आ रहे हैं. ऐेसे में शिक्षा का स्तर गिरने की संभावना बढ़ गई है. शिक्षा को लेकर यह परिपाटी बनी हुई है कि पढ़ो-लिखो और नौकर बनो. यही सोच शिक्षित बेरोजगारों को बढ़ावा दे रही है. सरकार के पास इतना काम नहीं है कि वो सभी को रोजगार दे सके. इसलिए शिक्षा प्राप्त करने के बाद स्वरोजगार को अपनाना होगा. श्री सहाय ने कहा कि समय का सम्मान करें. प्लान बनाकर कार्य करें. हर कार्य सुनिश्चित हो.
नवभारत के संपादक नीलकंठ पारटकर ने शिक्षा के बाजारवाद पर चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा कि आजादी के बाद शिक्षा के स्तर को बढ़ाने काफी प्रयास हुए लेकिन क्रियान्वयन ठीक नहीं हुआ. इसका एक फायदा यह हुआ कि शिक्षा के प्रति जागरुकता आई और देश में निजी स्कूल खुलने लगे. इस तरह से सरकारी और निजी शिक्षा की दो समानांतर शिक्षा व्यवस्था विकसित हो गई और शिक्षा का बाजार खड़ा हो गया. इस बाजार में शिक्षा नीलाम हो रही है. आज देश में 16 करोड़ स्किल्ड लोगों की जरूरत है. हकीकत यह है कि आज इंजीनियर का छात्र कॉल सेंटर में काम कर रहा है. क्योंकि उसके पास डिग्री है लेकिन स्किल्ड नहीं. ये कैसी शिक्षा व्यवस्था है जो हमें रोजगार नहीं दे पा रही है. आत्मिक शांति नहीं दे पा रही है. छत्तीसगढ़ की ही बात करें तो यहां की सरकार बाहर से शिक्षक लाने की बात कह रही है. क्या हम अपने यहां प्रोफेशनल्स पैदा नहीं कर पा रहे हैं? योग हमारे देश की शिक्षा है. इसे लेकर अब लोगों में जागरुकता आ रही है लेकिन न्यूयार्क में पिछले 25 सालों से इसकी कक्षाएं चल रही हैं. हम आजादी के 65 साल बाद योग दिवस मना रहे हैं. देश में शिक्षा का यही हाल रहा तो यह देश सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा गंवार देश हो जाएगा. डीपीएस रायपुर के प्राचार्य रघुनाथ मुखर्जी ने कहा कि शिक्षक का दर्जा सबसे ऊपर होता है.
पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम खुद को एक शिक्षक मानते थे. उन्होंने कहा कि हमें स्कूल की चारदीवारी से कम उसके बाहर ज्यादा सीखने मिलता है. शिक्षाविद् जवाहर सूर शेट्ठी ने कहा कि देश में 80 फीसदी सरकारी स्कूल हैं और मात्र 20 फीसदी निजी स्कूल हैं. 80 फीसदी स्कूल की हालत यह है कि वहां के बच्चे अव्यवस्था और असुविधा के बीच पढ़ रहे हैं. हमें शिक्षा को लेकर और गंभीर होने की जरूरत है. आज जिन बच्चों को हम प्राथमिक शिक्षा दे रहे हैं. वे 2030 में हम जिस समाज की परिकल्पना करते हैं उसका निर्माण करेंगे.
कांफ्रेंस में फन फूड के सीईओ राजीव पाठक, कैरियर पाइंट बिलासपुर के एमडी सुरिंदर सिंह चावला, फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स सोल्युशेन प्रालि. के डायरेक्टर अरुण कुमार खेतान, ओपी जिंदल स्कूल के प्राचार्य आर. के. त्रिवेदी, इंडियन सीएसआर गु्रप के एमडी रूसेन कुमार समेत शिक्षा जगत से जुड़ी बड़ी हस्तियां मौजूद थीं. दिनभर शिक्षा में गुणवत्ता सुधार, सामाजिक दायित्व, नये समय के लिए शिक्षा जगत की तैयारी विषय पर कई विशेषज्ञों ने शोध और कार्ययोजनाएं पेश कीं
सरकारी नौकरी - Government Jobs - Current Opening
इसके लिए सतत् अध्ययन की जरूरत है. आज जो परिदृश्य देखने मिल रहा है उसमें शिक्षकीय पेशे में अवसादग्रस्त और रोजगार की चाह में बेरोजगार आ रहे हैं. ऐेसे में शिक्षा का स्तर गिरने की संभावना बढ़ गई है. शिक्षा को लेकर यह परिपाटी बनी हुई है कि पढ़ो-लिखो और नौकर बनो. यही सोच शिक्षित बेरोजगारों को बढ़ावा दे रही है. सरकार के पास इतना काम नहीं है कि वो सभी को रोजगार दे सके. इसलिए शिक्षा प्राप्त करने के बाद स्वरोजगार को अपनाना होगा. श्री सहाय ने कहा कि समय का सम्मान करें. प्लान बनाकर कार्य करें. हर कार्य सुनिश्चित हो.
नवभारत के संपादक नीलकंठ पारटकर ने शिक्षा के बाजारवाद पर चिंता जाहिर की. उन्होंने कहा कि आजादी के बाद शिक्षा के स्तर को बढ़ाने काफी प्रयास हुए लेकिन क्रियान्वयन ठीक नहीं हुआ. इसका एक फायदा यह हुआ कि शिक्षा के प्रति जागरुकता आई और देश में निजी स्कूल खुलने लगे. इस तरह से सरकारी और निजी शिक्षा की दो समानांतर शिक्षा व्यवस्था विकसित हो गई और शिक्षा का बाजार खड़ा हो गया. इस बाजार में शिक्षा नीलाम हो रही है. आज देश में 16 करोड़ स्किल्ड लोगों की जरूरत है. हकीकत यह है कि आज इंजीनियर का छात्र कॉल सेंटर में काम कर रहा है. क्योंकि उसके पास डिग्री है लेकिन स्किल्ड नहीं. ये कैसी शिक्षा व्यवस्था है जो हमें रोजगार नहीं दे पा रही है. आत्मिक शांति नहीं दे पा रही है. छत्तीसगढ़ की ही बात करें तो यहां की सरकार बाहर से शिक्षक लाने की बात कह रही है. क्या हम अपने यहां प्रोफेशनल्स पैदा नहीं कर पा रहे हैं? योग हमारे देश की शिक्षा है. इसे लेकर अब लोगों में जागरुकता आ रही है लेकिन न्यूयार्क में पिछले 25 सालों से इसकी कक्षाएं चल रही हैं. हम आजादी के 65 साल बाद योग दिवस मना रहे हैं. देश में शिक्षा का यही हाल रहा तो यह देश सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा गंवार देश हो जाएगा. डीपीएस रायपुर के प्राचार्य रघुनाथ मुखर्जी ने कहा कि शिक्षक का दर्जा सबसे ऊपर होता है.
पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम खुद को एक शिक्षक मानते थे. उन्होंने कहा कि हमें स्कूल की चारदीवारी से कम उसके बाहर ज्यादा सीखने मिलता है. शिक्षाविद् जवाहर सूर शेट्ठी ने कहा कि देश में 80 फीसदी सरकारी स्कूल हैं और मात्र 20 फीसदी निजी स्कूल हैं. 80 फीसदी स्कूल की हालत यह है कि वहां के बच्चे अव्यवस्था और असुविधा के बीच पढ़ रहे हैं. हमें शिक्षा को लेकर और गंभीर होने की जरूरत है. आज जिन बच्चों को हम प्राथमिक शिक्षा दे रहे हैं. वे 2030 में हम जिस समाज की परिकल्पना करते हैं उसका निर्माण करेंगे.
कांफ्रेंस में फन फूड के सीईओ राजीव पाठक, कैरियर पाइंट बिलासपुर के एमडी सुरिंदर सिंह चावला, फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स सोल्युशेन प्रालि. के डायरेक्टर अरुण कुमार खेतान, ओपी जिंदल स्कूल के प्राचार्य आर. के. त्रिवेदी, इंडियन सीएसआर गु्रप के एमडी रूसेन कुमार समेत शिक्षा जगत से जुड़ी बड़ी हस्तियां मौजूद थीं. दिनभर शिक्षा में गुणवत्ता सुधार, सामाजिक दायित्व, नये समय के लिए शिक्षा जगत की तैयारी विषय पर कई विशेषज्ञों ने शोध और कार्ययोजनाएं पेश कीं
सरकारी नौकरी - Government Jobs - Current Opening