शासकीय शिक्षण संस्थाओं में शिक्षा को बढ़ावा देने और बच्चों की दर्ज संख्या बढ़ाने के उद्धेश्य से केंद्र और राज्य सरकार तमाम शिक्षा से योजनाएं संचालित कर रखी है. शिक्षा विभाग के उदासीनता के कारण महासमुंद जिले में ये योजनाएं फ्लाप नजर आ रही हैं. ये हम नहीं बल्कि शिक्षा विभाग के शासकीय आंकड़े खुद ही बयां कर रहे है.
जी हां महासमुंद में विगत दो साल में 13 हजार बच्चों का शासकीय स्कूलों से मोह भंग हो गया है. जहां शिक्षक और पालक इसके पीछे शिक्षा का व्यवसायीकरण हो जाना मानते है.
वहीं, शिक्षा विभाग के आला अधिकारी अपना ही राग अलाप रहे है. जिले में वर्तमान में 1280 प्राथमिक और 490 मिडिल कुल मिलाकर 1770 स्कूलें संचालित है. इन स्कूलों में सत्र 2013-14 में 1 लाख 51 हजार 72 छात्र-छात्रायें पढ़ाई करते थे, जो सत्र 2014-15 में घटकर 1 लाख 42 हजार 934 हो गई. इसी प्रकार सत्र 2015-16 में दर्ज संख्या घटकर 1 लाख 37 हजार 689 हो गई.
इन आंकड़ों पर गौर करे तो दो सालों में 13 हजार 383 छात्र-छात्राओं ने सरकारी स्कूल से अपना नाता तोड़ लिया. वहीं, शिक्षक और पालक भी ये मानते है कि सरकार शिक्षा का व्यवसायीकरण कर चुकी है. इसीलिए बच्चों की दर्ज संख्या कम हो रही है.
शासन शासकीय स्कूलों में दर्ज संख्या बढ़ाने के लिए निःशुल्क गणवेश, पाठ्य पुस्तक, मध्यान भोजन के साथ छात्रवृति भी देती है, पर शासकीय स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ने की बजाय साल दर साल कम होती जा रही है.
सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
जी हां महासमुंद में विगत दो साल में 13 हजार बच्चों का शासकीय स्कूलों से मोह भंग हो गया है. जहां शिक्षक और पालक इसके पीछे शिक्षा का व्यवसायीकरण हो जाना मानते है.
वहीं, शिक्षा विभाग के आला अधिकारी अपना ही राग अलाप रहे है. जिले में वर्तमान में 1280 प्राथमिक और 490 मिडिल कुल मिलाकर 1770 स्कूलें संचालित है. इन स्कूलों में सत्र 2013-14 में 1 लाख 51 हजार 72 छात्र-छात्रायें पढ़ाई करते थे, जो सत्र 2014-15 में घटकर 1 लाख 42 हजार 934 हो गई. इसी प्रकार सत्र 2015-16 में दर्ज संख्या घटकर 1 लाख 37 हजार 689 हो गई.
इन आंकड़ों पर गौर करे तो दो सालों में 13 हजार 383 छात्र-छात्राओं ने सरकारी स्कूल से अपना नाता तोड़ लिया. वहीं, शिक्षक और पालक भी ये मानते है कि सरकार शिक्षा का व्यवसायीकरण कर चुकी है. इसीलिए बच्चों की दर्ज संख्या कम हो रही है.
शासन शासकीय स्कूलों में दर्ज संख्या बढ़ाने के लिए निःशुल्क गणवेश, पाठ्य पुस्तक, मध्यान भोजन के साथ छात्रवृति भी देती है, पर शासकीय स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ने की बजाय साल दर साल कम होती जा रही है.
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