धमतरी। नईदुनिया जिले के सरकारी स्कूलों में हर साल
विद्यार्थियों की दर्ज संख्या दिनोंदिन कम हो रही है। जबकि प्राइवेट
स्कूलों में विद्यार्थी बढ़ने लगे हैं। पिछले शिक्षण सत्र 2016-17 की तुलना
में इस साल जारी सत्र 2017-18 शासकीय स्कूलों में विद्यार्थियों की संख्या
में 8426 छात्र कम हुई हैं।
इससे स्पष्ट है कि विद्यार्थियों और पालकों का रूझान निजी स्कूलों की ओर बढ़ रहा है।
सरकारी स्कूलों में तमाम कोशिश के बाद भी शिक्षक-शिक्षिकाएं विद्यार्थियों की दर्ज संख्या बढ़ाने में असफल है। निजी स्कूलों की पढ़ाई और तामझाम सुविधाएं विद्यार्थियों व पालकों को अपनी ओर आकर्षित कर दाखिला लेने मजबूर कर रहे हैं। इससे निबटने स्कूल शिक्षा विभाग के पास कोई कारगर पहल नहीं है। यही वजह है कि सरकारी स्कूलों में छात्र-छात्राओं की दर्ज संख्या तेजी से गिर रहा है। शिक्षा विभाग से मिली जानकारी के अनुसार शिक्षा सत्र 2016-17 में प्राथमिक, माध्यमिक, हाई और हायर सेकेंडरी स्कूलों में विद्यार्थियों की कुल दर्ज संख्या 1 लाख 77 हजार 984 थी। वर्ष 2017-18 में घटकर 1 लाख 69 हजार 558 हो गई। दर्ज संख्या के ग्राफ में इस साल सीधे 8426 विद्यार्थियों की गिरावट आई है।
नयापन लाने पहल करने की जरूरत
फोटो - टकेश्वरपुरी गोस्वामी, गोपालन पटेल, राजू चंद्राकर, कुलेश्वर साहू, केवल साहू।
शहर एवं गांव के कुछ जागरूक टकेश्वरपुरी गोस्वामी, गोपालन पटेल, राजू चंद्राकर, कुलेश्वर साहू, केवल साहू का कहना है कि निजी स्कूलों की तरह सरकारी स्कूलों में भी सुविधा और पढ़ाई को लेकर विशेष पहल होनी चाहिए। इससे निश्चित ही पालक अपने बच्चों को निजी स्कूल की बजाए सरकारी स्कूलों में पढ़ाएंगे। जिस तरह निजी स्कूलों में पढ़ाई को लेकर विशेष गंभीरता दिखाई देती है, वैसी सरकारी स्कूलों में नहीं होती। प्रतिदिन स्कूलों से शिक्षकों द्वारा होम वर्क, विभिन्न पैटर्न में पढ़ाई, बेहतर क्रियाकलाप, अनुशासन जैसे कई महत्वपूर्ण क्रियाकलाप निजी स्कूलों में कराया जाता है। यदि ऐसी ही सरकारी स्कूलों में कुछ पहल हो, तो सरकारी स्कूलों को भी निजी स्कूलों की तरह पालक तवज्जो देंगे। महंगे खर्च कर निजी स्कूलों में पढ़ाने की बजाए सरकारी स्कूलों में बच्चों को दाखिल कराएंगे।
अधिकारी और शासकीय कर्मी प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रहे
विभिन्न विभागों में पदस्थ अधिकारी और शासकीय कर्मी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रहे हैं। यहां तक की सरकारी स्कूलों में शिक्षक-शिक्षिका भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाना पसंद नहीं करते। अधिकांश शिक्षकों के बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं। शासकीय अधिकारी और कर्मचारियों को सरकारी स्कूलों की पढ़ाई पर भरोसा नहीं है, तो आमजन कैसे विश्वास कर सकते हैं। ज्यादातर गरीब तबके के मजबूर लोगों के ही बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं।
मिडिल में दर्ज संख्या अधिक
प्रायमरी में दर्ज संख्या कम है, लेकिन मिडिल स्कूल में दर्ज संख्या अधिक है। इसका प्रमुख कारण शहर व गांवों में अधिक संख्या में निजी स्कूलों का खुलना है। शुरूआत में पालक अपने बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ाना पसंद करते हैं। लेकिन जब निजी स्कूल में पढ़ाई की हकीकत जानते हैं, तो सरकारी स्कूल में भर्ती करने मजबूर हो जाते हैं।
- प्रवास कुमार बघेल, जिला शिक्षा अधिकारी धमतरी
विद्यार्थियों की दर्ज संख्या
स्कूल 2016-17 2017-18
प्राथमिक 72985 70188
मिडिल 49714 47800
हायर सेकेंडरी 55282 51570
कुल योग 177984 169558
इससे स्पष्ट है कि विद्यार्थियों और पालकों का रूझान निजी स्कूलों की ओर बढ़ रहा है।
सरकारी स्कूलों में तमाम कोशिश के बाद भी शिक्षक-शिक्षिकाएं विद्यार्थियों की दर्ज संख्या बढ़ाने में असफल है। निजी स्कूलों की पढ़ाई और तामझाम सुविधाएं विद्यार्थियों व पालकों को अपनी ओर आकर्षित कर दाखिला लेने मजबूर कर रहे हैं। इससे निबटने स्कूल शिक्षा विभाग के पास कोई कारगर पहल नहीं है। यही वजह है कि सरकारी स्कूलों में छात्र-छात्राओं की दर्ज संख्या तेजी से गिर रहा है। शिक्षा विभाग से मिली जानकारी के अनुसार शिक्षा सत्र 2016-17 में प्राथमिक, माध्यमिक, हाई और हायर सेकेंडरी स्कूलों में विद्यार्थियों की कुल दर्ज संख्या 1 लाख 77 हजार 984 थी। वर्ष 2017-18 में घटकर 1 लाख 69 हजार 558 हो गई। दर्ज संख्या के ग्राफ में इस साल सीधे 8426 विद्यार्थियों की गिरावट आई है।
नयापन लाने पहल करने की जरूरत
फोटो - टकेश्वरपुरी गोस्वामी, गोपालन पटेल, राजू चंद्राकर, कुलेश्वर साहू, केवल साहू।
शहर एवं गांव के कुछ जागरूक टकेश्वरपुरी गोस्वामी, गोपालन पटेल, राजू चंद्राकर, कुलेश्वर साहू, केवल साहू का कहना है कि निजी स्कूलों की तरह सरकारी स्कूलों में भी सुविधा और पढ़ाई को लेकर विशेष पहल होनी चाहिए। इससे निश्चित ही पालक अपने बच्चों को निजी स्कूल की बजाए सरकारी स्कूलों में पढ़ाएंगे। जिस तरह निजी स्कूलों में पढ़ाई को लेकर विशेष गंभीरता दिखाई देती है, वैसी सरकारी स्कूलों में नहीं होती। प्रतिदिन स्कूलों से शिक्षकों द्वारा होम वर्क, विभिन्न पैटर्न में पढ़ाई, बेहतर क्रियाकलाप, अनुशासन जैसे कई महत्वपूर्ण क्रियाकलाप निजी स्कूलों में कराया जाता है। यदि ऐसी ही सरकारी स्कूलों में कुछ पहल हो, तो सरकारी स्कूलों को भी निजी स्कूलों की तरह पालक तवज्जो देंगे। महंगे खर्च कर निजी स्कूलों में पढ़ाने की बजाए सरकारी स्कूलों में बच्चों को दाखिल कराएंगे।
अधिकारी और शासकीय कर्मी प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रहे
विभिन्न विभागों में पदस्थ अधिकारी और शासकीय कर्मी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रहे हैं। यहां तक की सरकारी स्कूलों में शिक्षक-शिक्षिका भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाना पसंद नहीं करते। अधिकांश शिक्षकों के बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं। शासकीय अधिकारी और कर्मचारियों को सरकारी स्कूलों की पढ़ाई पर भरोसा नहीं है, तो आमजन कैसे विश्वास कर सकते हैं। ज्यादातर गरीब तबके के मजबूर लोगों के ही बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं।
मिडिल में दर्ज संख्या अधिक
प्रायमरी में दर्ज संख्या कम है, लेकिन मिडिल स्कूल में दर्ज संख्या अधिक है। इसका प्रमुख कारण शहर व गांवों में अधिक संख्या में निजी स्कूलों का खुलना है। शुरूआत में पालक अपने बच्चों को निजी स्कूल में पढ़ाना पसंद करते हैं। लेकिन जब निजी स्कूल में पढ़ाई की हकीकत जानते हैं, तो सरकारी स्कूल में भर्ती करने मजबूर हो जाते हैं।
- प्रवास कुमार बघेल, जिला शिक्षा अधिकारी धमतरी
विद्यार्थियों की दर्ज संख्या
स्कूल 2016-17 2017-18
प्राथमिक 72985 70188
मिडिल 49714 47800
हायर सेकेंडरी 55282 51570
कुल योग 177984 169558