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द्वितीय श्रेणी राजपत्रित सेवा के तहत आने वाले व्याख्याता के निलंबन आदेश पर हाईकोर्ट की रोक

बिलासपुर । द्वितीय श्रेणी राजपत्रित सेवा के तहत आने वाले व्याख्याता को कलेक्टर द्वारा निलंबित के खिलाफ दायर याचिका की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने निलंबन आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी।

याचिकाकर्ता जी.एल. चौहान व्याख्याता के रूप में वर्ष 2012 में पदोन्नत हुए एवं इसके बाद राज्य शासन ने उन्हें बी.आर.सी.सी. के पद पर प्रतिनियुक्ति पर राजीव गांधी शिक्षा मिषन में भेज दिया। कलेक्टर द्वारा याचिकाकर्ता को आरोप लगाकर निलंबित कर दिया गया था। जिसे उसने हाईकोर्ट मेंं अधिवक्ता अजय श्रीवास्तव के माध्यम से चुनौती दी गई व बताया गया कि व्याख्याता छत्तीसगढ स्कूल शिक्षा राजपत्रित सेवा ;शालेय स्तरीयद्ध की अनुसूची एक के तहत व्याख्याता द्वितीय श्रेणी पद है एवं द्वितीय श्रेणी राजपत्रित शासकीय सेवक को निलंबित करने का अधिकार कलेक्टर को नहीं है। याचिकाकर्ता की नियुक्ति संचालक लोक शिक्षण के आदेश से हुई है एवं राज्य शासन के द्वारा उन्हें प्रतिनियुक्ति पर भेज गया है। इस प्रकार कलेक्टर को याचिकाकर्ता को निलंबित करने का अधिकार नही है। कलेक्टर मात्र तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को निलंबित कर सकता है। सुनवाई पश्चात् न्यायालय शासन को इस बात का जवाब देने के लिए कहा था कि किस अधिकार के तहत कलेक्टर ने याचिकाकर्ता को निलंबित किया है एवं क्या कलेक्टर द्वितीय श्रेणी के अधिकारी को निलंबित कर सकता है । पुन: सुनवाई होने पर षासन की ओर से इस बात कोई संतोश का जवाब नहीं दिया गया कि कलेक्टर को द्वितीय श्रेणी राजपत्रित अधिकारी को निलंबित करने का अधिकार है । इसके बाद  उच्च न्यायालय ने निलंबन आदेष पर रोक लगा दी एवं शासन को जवाब देने के लिये चार सप्ताह का समय निश्चित किया है।
विभागीय जांच पर लगी अंतरिम रोक
एक ही आरोप पर एवं लगभग सामान साक्षियों पर एक साथ आपराधिक प्रकरण एवं विभागीय जांच चलने पर दायर याचिका की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने अभियोजन साक्ष्य होते तक विभागीय जांच पर रोक लगा दी।
याचिकाकर्ता उमेश मिश्रा हेडकांस्टेबल के पद पर पुलिस विभाग में कार्यरत है उसके उपर यह आरोप लगाया गया कि उसने किसी अन्य की जमीन को अपना बताकर विक्रय कर दिया जिस पर उसके विरूद्ध धारा 420 का प्रकरण दर्ज कर न्यायालय में चालान प्रस्तुत किया गया। आपराधिक प्रकरण लंबित है।
इन्हीं आरोपों पर विभागीय जांच भी पुलिस विभाग द्वारा चालू कर दी गयी । याचिकाकर्ता ने पुलिस विभाग में आवेदन देकर विभागीय जांच पर रोक लगाने की मांग की जो निरस्त कर दी गयी ।
इस पर याचिकाकर्ता ने अधिवक्ता अजय श्रीवास्तव के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका प्रस्तुत कर बताया कि एक ही आरोप पर आपराधिक प्रकरण एवं विभागीय जांच चल रही है एवं चार साक्षी दोनों में सामान है। यदि विभागीय जांच में साक्ष्य पहले दे दिया जाता है तो आपराधिक प्रकरण में याचिकाकर्ता के बचाव पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा किन्तु विभाग द्वारा उक्त तथ्य को अनदेखा करते हुए विभागीय कार्रवाई की जा रही है जिस पर रोक लगाना आवश्यक है।
सुनवाई पश्चात् उच्च न्यायालय ने निर्देशित किया कि जब तक आपराधिक प्रकरण में अभियोजन साक्ष्य नहीं हो जाता तब तक विभागीय कार्रवाई पर रोक रहेगी।
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