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छत्तीसगढ़ के इस जिले के स्कूलों में है शिक्षकों की कमी, तो कहीं 12 बच्चों के लिए दो शिक्षक

कवर्धा. छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में शिक्षा व्यवस्था से भी भली भांति वाकिफ है। प्राथमिक स्कूलों से लेकर जिले में संचालित कॉलेजों में शिक्षक व प्राध्यापकों की कमी बनी हुई है। इससे छात्र-छात्राओं की पढ़ाई प्रभावित होती रही है। इधर प्राथमिक शाला बीजाझोरी में महज 12 छात्र-छात्राएं है, लेकिन यहां दो शिक्षक पदस्थ है।

हमेशा यह देखा जाता है कि स्कूलों में बच्चों की दर्ज संख्या के हिसाब से शिक्षक नहीं होते, लेकिन यहां इसके ठीक विपरित है। विकासखंड कवर्धा अंतर्गत ग्राम बीजाझोरी में प्राथमिक शाला संचालित हो रहा है। जहां छात्र-छात्राओं की दर्ज संख्या 12 है, जिसमें 06 बालक व 06 बालिका है। जबकि स्कूल में दो शिक्षक पदस्थ है। जिले में कई ऐसे स्कूल है, जहां छात्र-छात्राओं के दर्ज संख्या के हिसाब से शिक्षक ही है।
ऐसे में जैसे तैसे शिक्षक कोर्स को आगे बढ़ा रहे हैं। शासन द्वारा वर्ष 2015-16 में युक्तियुक्तकरण के तहत 20 स्कूलों को बंद कर दिया गया, जिसमें विद्यालयों की दूरी व दर्ज संख्या ही मुख्य कारण बना था, लेकिन जिले में संचालित स्कूलों के साथ भेदभाव हुआ है। किसी के पास भवन का अभाव, तो कोई शिक्षक के कमी से जूझ रहा है। वहीं बीजाझोरी के प्राथमिक दो शिक्षक पदस्थ है, जबकि बच्चों की दर्ज संख्या महज 12 है। बच्चों के लिए मध्यान्ह भोजन बनाने के लिए एक रसोईया व एक सफाई कर्मचारी है।
शिक्षक देने में भेदभाव
प्राथमिक शालाओं में शिक्षकों की नियुक्ति भेदभावपूर्ण हुई है। यहां दर्ज संख्या कम होने के कारण कक्षा संचालन के बाद शिक्षक खाली बैठे रहते हैं। इसके विपरीत कई स्कूल ऐसे है, जहां 100 से अधिक बच्चों के पीछे महज दो शिक्षक अध्यापन का भार संभाले हुए है। इनमें से एक कार्यालयीन कामकाज में व्यस्त रहते हैं। ऐसे में एक शिक्षक ही बच्चों को बैठाकर अध्यापन कराते हैं। यह विभागीय लापरवाही को दर्शाता है। जिले में ऐसे कई स्कूल भी हैं, जिनमें शिक्षक नियुक्ति को लेकर भेदभाव हुआ है।

मंडरा रहा खतरा
स्कूलों में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं के ऊपर खतरा हमेशा मंडरा रहा है। स्कूल परिसर में बाउंड्रीवाल का अभाव है, जिसके चलते स्कूल परिसर में मवेशी प्रवेश कर जाते हैं। कभी कभी तो एक दूसरे से भी जाते हैं। ऐसे में छात्र-छात्राओं की सुरक्षा के बारे में सोचना बेमानी ही लगती है। स्कूलों में बाउंड्रीवाल बनाने के लिए हर साल करोड़ों रुपए आते हैं, लेकिन विभागीय निष्क्रियता के कारण काम पूरा नहीं होता। ऐसे में बच्चों की सुरक्षा को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो जाता है।

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